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अहङ्कार

ध्यान, आराधना और स्वर्गीय आनन्द में निमग्न रहती थी। इसलिए उन्हें 'माता मरियम की पुत्रियाँ' कहते थे और वह उज्ज्वल वस्त्र ही धारण करती थीं। जो स्त्रियाँ हाथों से काम- धन्धा करती थी, वह 'माथी की पुत्रियाँ' कहलाती थीं और नीले वस्त्र पहनती थीं। सभी स्त्रियाँ कंटोप लगाती थीं, केवल युवतियाँ बालों के दो चार गुच्छे माथे पर निकाले रहती थीं—सम्भवतः वह आप-ही-आप बाहर निकल आते थे, क्योंकि वालों को सँवारना या दिखाना नियमों के विरुद्ध था। एक बहुत लम्बी, गोरी, वृद्ध महिला एक कुटी से निकलकर दूसरी कुटी में जाती थी। उसके हाथ में लकडी की एक जरीब थी। पापनाशी बड़े अदब के साथ उसके समीप गया, उसके नकाब के किनारों का चुम्बन किया और बोला—

पूज्या अलबीना, परम पिता तेरी आत्मा को शान्ति दें ! मैं उस छत्ते के लिए जिसकी तू रानी है, एक मक्खी लाया हूँ जो पुष्पहीन मैदानों में इधर-उधर भटकती फिरती थी। मैंने इसे अपनी हथेली में उठा लिया और उसे अपने स्वासोच्छ्वास से पुनर्जीवित किया। मैं इसे तेरी शरण लाया हूॅ।

यह कहकर उसने थायस की ओर इशारा किया। थायस तुरंत क़ैसर की पुत्री के सम्मुख घुटनों के बल बैठ गई ।

अलबीना ने थायस पर एक मर्मभेदी दृष्टि डाली, उसे उठने को कहा, उसके मस्तक का चुम्बन किया और तब योगी से बोली—

हम इसे 'माता मरियम की पुत्रियों' के साथ रखेंगे।

पापनाशी ने तब थायस के मुक्तिगृह में आने का पूरा वृत्तान्त कह सुनाया। ईश्वर ने कैसे उसे प्रेरणा की, कैसे वह इसकन्द्रिया पहुँचा और किन-किन उपायों से उसके मन में उसने प्रभु मसीह का अनुराग उत्पन्न किया। इसके बाद उसने प्रस्ताव किया कि