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अहङ्कार

एकान्तवासी योगियों की दुस्मह परीक्षाओं का पूर्व लक्षण है। थायस की सूरत आठों पहर उसकी आँखों के आगे फिरा करती। वह इसे अपनी आँखों के सामने से हटाना भी न चाहता था, क्योंकि अब तक वह समझता था कि यह मेरे उपर ईश्वर की विशेष कृपा है और वास्तव में यह एक योगिनी की मूर्ति है। लेकिन एक दिन प्रभात की सुषुमावस्था में उसने थायस को स्वप्न में देखा। उसके केशों पर पुरुषों का मुकुट विराज रहा था, और उसका माधुर्य ही भयावह जात होता था कि वह भीत होकर चीख उठा और जागा तो ठण्डे पसीने से तर था, मानो धर्फ के कुण्ड में से निकला हो । उसकी आँखें भय की निद्रा से भारी हो रही थी कि उसे अपने मुख पर गर्म-गर्म स्वासों के चलने का अनुभव हुआ। एक छोटा-सा गीदड़ उसकी चारपाई के पट्टी पर दोनों अगले पैर रखे हँप-हँपकर अपनी दुर्गन्धयुक्त स्वासें उसके मुख पर छोड़ रहा था, और उसे दांत निकाल-निकालकर दिखा रहा था।

पापनाशी को अत्यन्त विस्मय हुआ। उसे ऐसा जान पड़ा, मेरे पैरों के नीचे की जमीन धँस गई। और वास्तव में वह पतित हो गया था। कुछ देर तक तो उसमें विचार करने की शक्ति ही न रही, और जब वह फिर सचेत भी हुआ तो ध्यान और विचार से उसकी अशांति और भी बढ़ गई।

उसने सोचा—इन दो बातों में से एक बात है ; या तो यह स्वप्न की भाँति ईश्वर को प्रेरित किया हुआ था और शुभ स्वप्न था, और यह मेरी स्वाभाविक दुर्बुद्धि है जिसने उसे यह भयकर रूप दे दिया है जैसे गंदे प्याले में अगर का रस खट्टा हो जाता है। मैंने अपने अज्ञानवश ईश्वरीय आदेश को ईश्वरीय तिरस्कार का रूप दे दिया और इस गीदड़ रूपी शैतान ने मेरी शकान्वित