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अहङ्कार

अत्यधिक ताप से अत्यधिक शीत में आ पहुँचे। उसे तुरन्त खाँसी और ज्वर घेर लेते हैं। बन्धु, तुम्हारे लिए मेरी यह सलाह है कि किसी निर्जन महस्थान में जाने के बदले, मनबहलाव के ऐसे काम करो जो तपस्वियों और साधुओं के सर्वथा योग्य हैं। तुम्हारी जगह मैं होता तो समीपवर्ती धर्माश्रमों की सैर करता। इनमें से कई देखने के योग्य हैं, लोग उनकी वही प्रशंसा करते हैं। सिरैपियन के ऋषिगृह में एक हजार चार सौ बत्तीस कुटियाँ बना हुई हैं, और तपस्वियों को उतने वर्गों में विभक्त किया गया है जितने अक्षर यूनानी लिपि में है। मुझसे लोगों ने यह भी कहा है कि इस वर्गीकरण में अक्षर, आकार और साधकों की मनोवृत्तियों में एक प्रकार की अनुरूपता का ध्यान रखा जाता है, उदाहरणत: वह लोग जो Z वर्ग के अंतर्गत रखे जाते हैं चयन प्रकृति के होते हैं, और जो लोग शांतप्रकृत हैं वह I के अतर्गत रखे जाते हैं । बन्धुवर, तुम्हारी जगह मैं होता तो अपनी आँखों से इस रहस्य को देखता, और अब तक ऐसे अद्भुत स्थान की सैर न कर लेता चैन न लेता । क्या तुम इसे अद्भुत नहीं समझते ? किसी की मनोवृत्तियों का अनुमान कर लेना कितना कठिन है और जो लोग निम्न श्रेणी में रखा जाना स्वीकार कर लेते है, वह वास्तव में साधु है क्योंकि उनकी आत्मशुद्धि का लक्ष्य उनके सामने रहता है। वह जानते हैं कि हम किस भाँति जीवन व्यतीत करने से सरल अक्षरों के अंतर्गत होसकते हैं । इसके अतिरिक्त व्रतधारियों के देखने और मनन करने योग्य और भी कितनी ही बाते हैं। मैं भिन्न-भिन्न संगतों को जो नील नदी के तट पर फैली हुई हैं, अवश्य देखता, उनके नियमों और सिद्धान्तों का अवलोकन करता, एक आश्रम के नियमावली की दूसरे से तुलना करता कि उनमें क्या अंतर है, क्या दोष है,