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अहङ्कार

क्या गुण है। तुम जैसे धर्मात्मा पुरुष के लिए यह आलोचना सर्वदा योग्य है । तुमने लोगों से यह अवश्य ही सुना होगा कि ऋषि एकरम ने अपने आश्रम के लिए बड़े उत्कृष्ट धार्मिक नियमों की रचना की है। उनकी आज्ञा लेकर तुम इस नियमावली की नकल कर सकते हो क्योंकि तुम्हारे अक्षर बड़े सुन्दर होते हैं। मैं नहीं लिख सकता क्योंकि मेरे हाथ फावड़ा चलाते चलाते इतने कठोर हो गये हैं कि उनमें पतले कलम को भोजपत्र पर चलाने की क्षमता ही नहीं रही। लिखने के लिए हाथों का कोमल होना जरूरी है। लेकिन बन्धुवर, तुम तो लिखने में चतुर हो, और तुम्हें ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए कि उसने तुम्हें यह विद्या प्रदान की, क्योंकि सुन्दर लिपियों की जितनी प्रशंसा की जाय थोड़ी है । ग्रंथों की नकल करना और पढ़ना बुरे विचारों से बचने का बहुत ही उत्तम साधन है । क्यो, बन्धु पापनाशी, तुम हमारे श्रद्धेय ऋषियों, पालम और ऐएटोनी के सदुपदेशों को लिपिबद्ध नहीं कर डालते ? ऐसे धार्मिक कामों में लगे रहने से शनैः शनैः तुम चित्त और आत्मा की शान्ति को पुनः लाभ कर लोगे, फिर एकान्त तुम्हें सुखद जान पड़ेगा, और शीघ्र ही तुम इस योग्य हो जाओगे कि आत्म-शुद्धि की उन क्रियाओं में प्रवृत्त हो जाओगे जिनमें तुम्हारी यात्रा ने विघ्न डाल दिया था। लेकिन कठिन कष्टों और दमनकारी वेदनाओं के सहन-से तुम्हें बहुत आशा न रखनी चाहिए । जब पिता ऐण्टोनी हमारे बीच में थे तो कहा करते थे—बहुत व्रत रखने से दुर्बलता आती है और दुर्व- लवा से आलस्य पैदा होता है। कुछ ऐसे तपस्वी हैं जो कई दिनों तक लगातार अनशन व्रत रखकर अपने शरीर को चौपट कर डालते हैं। उनके विषय में यह कहना सर्वथा सत्य है कि वह अपने ही हाथों से अपनी छाती पर कटार मार लेते हैं और