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अहङ्कार

और बन्धु पालम की रक्षा करते रहना । ईश्वर तुम्हें शान्ति दे। नमस्कार!

जब वह चला तो उसके सभी शिष्य साष्टांग दण्डवत् करने लगे और जब उन्होंने सिर उठाया तो उन्हें अपन, गुरु की लथी, श्याम मूर्ति क्षितिज में विलीन होती हुई दिखाई दी।

वह रात और दिन अविश्रान्त चलता रहा यहाँ तक कि वह उस मन्दिर में जा पहुॅचा, जो प्राचीन काल में मूर्तिपूजकों ने बनाई थी और जिसमें वह अपनी विचित्र पूर्व यात्रा में एक रात सोया था। अब इस मन्दिर का भग्नावशेष मात्र रह गया था और सर्प, विच्छू, चमगादड़ आदि जन्तुओं के अतिरिक्त प्रेत भी इसमें अपना अड्डा बनाये हुए थे। दीवारें जिन पर जादू के चिह्न बने हुए थे अभी तक खड़ी थीं। तीस बृहदाकार स्तम्म जिनके शिखरों पर मनुष्य के सिर अथवा कमल के फूल धने हुए थे, अभी तक एक भारी चबूतरे को उठाये हुए थे। लेकिन मन्दिर के एक सिरे पर एक स्तम्भ इस चबूतरे के नीचे से सरक गया था और अब अकेला खा था। इसका कलश एक बी का मुसकुराता हुआ मुख-मण्डल था। उसकी आँखें लम्बी थी, कपोल भरे हुए, और मस्तक पर गाय की सींग थीं।

पापनाशी इस स्तम्भ को देखते ही पहचान गया कि यह वह स्तम्भ है जिसे उसने स्वप्न में देखा था, और उसने अनुमान किया कि इसकी ऊँचाई बत्तीस हाथों से कम न होगी। वह निकट के गाँव में गया और उतनी ही ऊँची एक सीढ़ी बनवाई, और जब सीढ़ी तैयार हो गई तो वह स्तम्भ से लगाकर खड़ी की गई, वह उस पर चढ़ा और शिखर पर जाकर उसने भूमि पर मस्तक नवा कर यों प्रार्थना की—