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अहङ्कार

प्राप्त की। निन्यप्रन्दि प्रात:काल बहु आकर अपने स्वामी के चारों ओर खड़े हो जाने और उसके सदुपदेश सुनने थे।

वह उन्हें सिखाता था—

प्रिय पुत्री, उन्हीं नन्हें बालकों के समान बन रही जिन्हें प्रभु मसीह प्यार किया करते थे। वही मुक्ति का मार्ग है। बासना सब पापों का मुल है। बहु वासना में उसी भाँति उत्पन्न होने जैसे संतान पिता में। अहंकार, लोभ, आलन्य, क्रोध और ईर्ष्या सही प्रिय सन्तान है। मैंने इस्कन्द्रिया में यही कुटिल ब्यापार देखा । मन बनसम्पन्न पुरुषों को कुचष्टायों में प्रवाहित होते देखा है जो उस नदी की बाढ़ की भाँति हैं। जिसमें मैला जल भरा हो। वह उन्हें दु:ख की बाड़ी में बहा ले जाना है।

मलायम और मिगरियन अधिष्ठानाओं इस अड्न तपस्या का सामाचार सुना दृष्टानों में अपने नेत्रों की कृतार्थ करने की इच्छा प्रकट की। उसकी नौका के बिकीण पालों दूर से नदी में आते देखकर पारनाशी के मन में अनिवार्यतः यह विचार उत्पन्न हुआ कि ईश्वरने एकान्त में भी योगियों के लिए आदेश बना दिया है। दोनों महात्माओं ने जब उसे देवाना अहें बड़ा हल था और आपस में आपस करके जन्दनि मुसम्मान में पली अमानुनिक नरस्या को न्यान्य ठहराया । अनाव उन्होंने पापनाशी में नीचे उतर आने का अनुरोध किया।

वह बोला—यह जीवन-प्रणाली परम्परागत व्यवहार सर्वथा विरूद्ध है। प्रभु-सिद्धान्न इसकी आज्ञा नहीं देते।

लेकिन पारनाशी ने उत्तर दिया—योगी जीवन-नियमों और परम्परागत व्यवहारों की परवा नहीं करना। योगी न अमा- शरण व्यक्ति होता है, इसलिए यदि उसका जीवन भी यमाघा-