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अहङ्कार

जलूस चला आता था जो स्तम्भ के पास चाकर रुक गया और इस देव-पुरुष के दर्शनों के लिए धक्कम-धक्का करने लगा। इन सवारियों में से ऐसे रोगी निकले जिनको देखकर हृदय काँप उठता था। माताएँ ऐसे बालकों को लाई थी जिनके अग टेढ़े हो गये थे, आखें निकल आई थी और गले बैठ गये थे। पाप- नाशी ने उनकी देहपर अपना हाथ रखा। तब अंधे, हाथों से टटोलते, पापनाशी की ओर दो रसमय छिद्रों से ताकते हुए आये। पक्षाघात पीडिन प्राणियों ने अपने गतिशून्य, सूख्ने तथा संकुचित अंगों को पापनाशी के सम्मुख उपस्थित किया। लँगड़ों ने अपनी टाँगें दिखाई । कछुई के रोगवाली स्त्रियाँ दोनों हाथों से छाती को दवाये हुए आई और उसके सामने अपने जर्जर वक्ष खोल दिये। जलोदर के रोगी, शराब के पीपों की भाँति फूले हुए, उसके सम्मुख भूमि पर लेटाये गये। पापनाशी ने इन समस्त रोगी प्राणियों को आशीर्वाद दिया । पीलपाँव से पीड़ित हबशी सँभल-सँभलकर चलते हुए आये और उनकी और करुण नेत्रों ले ताकने लगे । उसने उनके ऊपर सलीव का चिह्न बना दिया। एक युवती बड़ी दूर से डोली में लाई गई थी। रक्त उगलने के बाद तीन दिन से उसने आँखें न खोली थीं। वह एक मोम की मूर्ति की भाँनि दीखती थी और उसके माता- पिता ने उसे मुर्दा समझकर उसकी छाती पर खजूर की एक पत्ती रख दी थी। पापनाशी ने ज्योंही ईश्वर की प्रार्थना की, युवती ने सिर उठाया और आँखें खोल दी।

यात्रियों ने अपने घर लौटकर इन सिद्धियों की चर्चा की तो मिरगी के रोगी मी दौड़े। मित्र के सभी प्रांतों से अगणित रोगी आकर जमा हो गये । ज्योंही उन्होंने यह स्तम्म देखा तो मूछित हो गये, जामीन पर लेटने लगे और उनके हाथ-पैर अकड़ गये ।