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अहङ्कार

गई है। कोटा एक सुनहरी नौका पर जिस पर बैगनी रंग के पाल लगे हुए थे, अपनी समस्त नाविक-शक्ति के आगे-आगे निशान उड़ाता चला आता है । घाट पर पहुँचकर वह उत्तर पक्ष और अपने मंत्री तथा अपने वैद्द अरिस्टीयस के साथ नगर की तरफ़ चला। मंत्री के हाथ में नदी के मानचित्र प्रादि थे। और वैद्य से कोटा स्वयं बातें कर रहा था । वृद्धावस्था में उसे वैद्यराज की बातों में आनन्द मिलता था।

कोटा के पीछे सहस्रों मनुष्यों का जलूस चला और जलतट पर सैनिकों की बर्दियाँ और राज्यकर्मचारियों के चुरों ही चुरो दिखाई देने लगे। इन चुरों में चौड़ी, बैगनी रंग की गाँठ लगी थी जो रोम के व्यवस्थापक सभा के सदस्यों का सम्मान चिन्ह थी। कोटा उस पवित्र स्तम्भ के समीप रुक गया और महात्मा पापनाशी को ध्यान से देखने लगा । गरमी के कारण अपने चुरों के दामन से मुँह पर का पसीना बह पोंछता था । वह स्वभाव से विचित्र अनुभवों का प्रेमी था, और अपनी जलयात्राओं में उसने कितनी ही अद्भुत बातें देखी थीं। वह उन्हें स्मरण रखना चाहता था। उसकी इच्छा थी कि अपना वर्तमान इतिहास ग्रंथ समाप्त करने के बाद अपनी समस्त यात्राओं का वृत्तान्त लिखे और जो-जो अनोखी बातें देखी हैं उनका उल्लेख करे । यह दृश्य देखकर उसे बहुत दिलचस्पी हुई।

उसने खाँसकर कहा—विविध बात है ! और यह पुरुष मेरा मेहमान था। मैं अपनी यात्रा वृत्तान्त में यह अवश्य लिखूंगा। हाँ, गतवर्ष इस पुरुष ने मेरे यहाँ दावत खाई थी, और उसके एक ही दिन बाद एक वेश्या को लेकर भाग गया था। फिर अपने मंत्री से बोला—

पुत्र, मेरे पत्रों पर इसका उल्लेख कर दो। इस स्तम्भ की