पृष्ठ:अहंकार.pdf/२०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८८
अहङ्कार

का कोई गुप्त अंग अवश्य ही विकृत हो गया है। इसके अतिरिक्त इस अवस्था में जीवन व्यतीत करना, इतनी असाधारण बात नहीं है जितनी आप समझ रहे हैं। आपको भारतवर्ष के योगियों की याद है ? यहाँ के योगीगण इस भाँति बहुत दिनों तक निश्चल रह सकते हैं—एक दो वर्ष नहीं बल्कि २०, ३०, ४०, वर्षों तक । कभी-कभी इससे भी अधिक । यहाँ तक कि मैंने तो सुना है कि वह निर्जल, निराहार सौ सौ वर्षों तक, समाधिस्थ रहते हैं।

कोटा ने कहा—ईश्वर की सौगंध से कहता हूॅ, मुझे यह दशा अत्यन्त कुतूहलजनक मालुम हो रही है। यह निराले प्रकार का पागलपन है। मैं इसकी प्रशसा नही कर सकता क्योंकि मनुष्य का जन्म चलने और काम करने के निमित्त हुआ है।और उद्योग- हीनता साम्राज्य के प्रति असभ्य अत्यचार है। मुझे ऐसे किसी धर्म का ज्ञान नहीं है जो ऐसी आपत्तिजनक क्रियाओं का आदेश करता हो । सम्भव है एशियाई सम्प्रदायों में इसकी व्यवस्था हो । अब मै शाम (सीरिया) का सूबेदार था तो मैंने 'हेरा' नगर के द्वार पर ऊँचा चबूतरा बना हुआ देखा । एक आदमी साल में दो बार उस पर चढ़ता था और वहाँ सात दिनों तक चुपचाप बैठा रहता था। लोगों को विश्वास था कि यह प्राणी देवताओं से बातें करता था और शाम देश को धन-धान्य पूर्ण रखने के लिए उनसे विनय करता था। मुझे यह प्रथा निरर्थक-सी जान पड़ी, किन्तु मैंने उसे उठाने की चेष्टा नहीं की। क्योंकि मेरा विचार है कि राज्य कर्मचारियों को प्रजा के रीति-रेवानों में हस्त- क्षेप न करना चाहिए बल्कि इनको मर्यादित, रखना उसका कर्तव्य है। शासकों की यह नीति कदापि न होनी चाहिए कि वह प्रजा को किसी विशेष मत की ओर खींचे, बल्कि उनको