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अहङ्कार

उसी मत की रक्षा करनी चाहिए जो प्रचलित हो, चाहे वह अच्छा हो या बुरा । क्योंकि देश, काल, और जाति की परिस्थिति के अनुसार ही उसका जन्म और विकास हुआ है। अगर शासन किसी मत को दमन करने की चेष्टा करता है तो वह अपने को विचारों में क्रांतिकारी और व्यवहारों में अत्याचारी सिद्ध करता है, और प्रजा उससे घृणा करे तो सर्वदा क्षम्य है। फिर आप जनता के मिथ्या विचारों का सुधार क्योंकर कर सकते हैं अगर आप उनको समझने और उन्हें निरपेक्ष भाव से देखने मे असमर्थ है। अरिस्टीयस, मेरा विचार है कि इस पक्षियों के बसाये हुए मेघ नगर को आकाश में लटका रहने दूँ। उस पर नैसर्गिक शक्तियों का कोप ही क्या कम है कि मैं भी उसके उजाड़ने से अग्रसर बनें । उसके उजाड़ने से मुझे अपयश के सिवा और कुछ हाथ न लगेगा। हां, इस आकाश-निवासी योगी के विचारों और विश्वासों को लेखबद्ध करना चाहिए ।

यह कहकर उसने फिर खाँसा, और अपने मत्री के कन्धे पर हाथ रखकर बोला—

पुत्र, नोट कर लो कि ईसाई सम्प्रदाय के कुछ अनुयायियों के मतानुसार स्तम्भों के शिखर पर रहना और वेश्याओं को ले भागना सराहनीय कार्य है। इतना और बढ़ा दो कि यह प्रथाएँ सृष्टि करनेवाले देवताओं की उपासना के प्रमाण हैं। ईसाई धर्म ईश्वरवादी होकर देवताओं के प्रभाव को अभी तक नहीं मिटा सका । लेकिन इस विपय में हमें स्वयं इस योगी ही से जिज्ञासा करनी चाहिए।

तब सिर उठाकर और धूप से आँखों को बचाने के लिए हाथों का आड करके उसने उच्च स्वर मे कहा—

इधर देखो पपानाशी । अगर तुम अभी यह नहीं भूने हो