पृष्ठ:अहंकार.pdf/२११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९०
अहङ्कार

कि तुम एक बार मेरे मेहमान रह चुके हो तो मेरी बातों का उत्तर दो। तुम वहाँ आकाश पर बैठे क्या कर रहे हो? तुम्हारे यहाँ जाने का और रहने का क्या उद्देश्य है ? क्या तुम्हारा विचार है कि इस स्तम्भ पर चढ़कर तुम देश का कुछ कल्याण कर सकते हो?

पापनाशी ने कोटा को केवल प्रतिभावादी समझकर तुच्छ दृष्टि से देखा और उसे कुछ उत्तर देने योग्य न समझा । लेकिन उसका शिष्य फ्लेवियन समीप आकर बोला—

मान्यवर, यह ऋषि समस्त भूमण्डल के पापों को अपने ऊपर लेता और रोगियों को आरोग्य प्रदान करता है।

कोटा—क़सम खुदा की, यह तो बड़े दिल्लगी की बात है ! सुनते हो अरिस्टीयस, यह आकाशवासी महात्मा चिकित्सा करता है । यह तो तुम्हारा प्रतिवादी निकला। तुम ऐसे आकाशा- रोही वैद्य से क्योंकर पेश पा सकोगे ?

अरिस्टीयस ने सिर हिलाकर कहा—

यह बहुत सम्भव है कि वह बाजे-बाजे रोगों की चिकित्सा करने में मुझसे कुशल हो; उदाहरणतः मिरगी ही को ले लीजिए। गँवारी बोलचाल में लोग इसे 'देवरोग' कहते हैं, यद्यपि सभी रोग देवी हैं, क्योंकि उनके सृजन करनेवाले तो देवगण ही हैं । लेकिन इस विशेष रोग का कारण अंशतः कल्पना-शक्ति में है और आप यह स्वीकार करेंगे कि यह योगी इतनी ऊँचाई पर और एक देवी के मस्तक पर बैठा हुआ, रोगियों की कल्पना पर जितना प्रभाव डाल सकता है, उतना मैं अपने चिकित्सालय में खरल और दस्ते से औषधियाँ घोंटकर कदापि नहीं डाल सकता । महाशय, कितनी ही गुप्त शक्तियाँ हैं जो शान और बुद्धि से कहीं बढ़कर प्रभावोत्पादक हैं।