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अहंकार

कोटा-वह कौन शक्तियां हैं।

अरिस्टीयस-मूर्खता और अज्ञान !

कोटा-मैंने अपनी बड़ी बड़ी यात्राओं में भी इससे विचित्र दृश्य नहीं देखा, और मुझे आशा है कि कभी कोई सुयोग्य इति- हास-लेखक मोचननगर की उत्पत्ति का सविस्तार वर्णन करेगा। लेकिन हम जैसे बहुधन्धो मनुष्यों को किसी वस्तु के देखने में चाहे वह कितना ही कुतूहलजनक क्यों न हो, अपना बहुत समय न गवाना चाहिए। चलिये, अब नहरों का निरीक्षण करें। अच्छा पापनाशी, नमस्कार । फिर कभी पाऊँगा, लेकिन अगर तुम फिर कमो पृथ्वी पर उतरो और इस्कन्द्रिया आने का संयोग होतो मुझे न भूलना । मेरे द्वार तेरे स्वागत के लिए नित्य खुले हैं। मेरे यहां आकर अवश्य भोजन करना।

हजारों मनुष्यों ने कोटा के यह शब्द सुने। एक ने दूसरे से कहा। ईसाइयों ने और भी नमक मिर्च लगाया। जनवा किसी की प्रशंसा बड़े अधिकारियों के मुंह से सुनती है तो उसकी दृष्टि में उस प्रशंसित मनुष्य का आदर-सम्मान शतगुण अधिक हो जाता है। पापनाशी की और भी ख्याति होने लगी। सरल-हृद्य मतानु- रागियों ने इन शब्दों को और भी परिमार्जित और अति- शयोक्तिपूर्ण रूप दे दिया। किंवदन्तियाँ होने लगी कि महात्मा पापनाशी ने स्तम्भ के शिखर पर बैठे बैठे, जलसेना के अध्यक्ष को ईसाई धर्म का अनुगामी बना लिया। उनके उपदेशों में यह चमत्कार है कि सुनते ही बड़े बड़े नास्तिक भी मस्तक मुका देते हैं। कोटा के अन्तिम शब्दों में भक्तों को गुप्त आशय छिपा हुआ प्रतीत हुआ। जिस स्वागत की उस उच्च अधिकारी ने सूचना दी थी वह साधारण स्वागत नहीं था। वह वास्तव में एक माध्यात्मिक भोज, एक स्वर्गीय सम्मेलन, एक पारलौकिक संयोग