में उड़ना चाहिए। नीचे कूद पड़, स्वर्ग के दूत तुझे सँभालने के लिए खड़े हैं, तुरन्त कूद पड़!
पापनाशी ने उत्तर दिया—
ईश्वर की इस संसार में उसी भाँति विजय हो जैसे स्वर्ग में हैं!
अपनी विशाल वाहें फैलाकर, मानो किसी बृहदाकार पक्षी ने अपने छिदरे पंख फैलाये हों, वह नीचे कुदनेवाला ही था कि सहसा एक डरावनी, उपहासमूचक हास्यधनि उसके कानों में आई। भीत होकर उसने पूछा—यह कौन हँस रहा है। उस आवाज़ ने उत्तर दिया—
चौंकते क्यों हो? अभी तो हमारी मित्रता का आरम्भ हुआ । एक दिन ऐसा आयेगा जब मुझसे तुम्हारा परिचय घनिष्ठ हो जायगा । मित्रवर, मैंनझी तुझे इस स्तम्भ पर चढ़ने की प्रेरणा की थी, और जिस निरापदमाव से तुमने मेरी आज्ञा शिरोधार्य की इससे मैं बहुत प्रसन्न हूँ। पापनाशी, मैं तुमसे बहुत खुश हूँ।
पापनाशी ने भयभीत होकर कह—-
प्रभू, प्रभू! मैं तुझे अब पहचान गया, खूब पहचान गया! तू ही वह प्राणी है जो प्रभू मसीह को मन्दिर के कलश पर ले गया था और भूमण्डल के समस्त साम्राज्यों का दिग्दर्शन कराया था।
तू शैतान है ! भगवान्, तुम मुझसे क्यों पराइ मुख हो ।
वह थर-थर काँपता हुआ भूमि पर गिर पड़ा, और सोचने लगा—
मुझे पहले इसका ज्ञान क्यों न हुआ? मैं इस नेत्रहीन, अधिर, और अपंग मनुष्यों से भी अभागा हूँ जो नित्य मेरी शरण आते हैं। मेरी अन्तर्दृष्टि सर्वथा ज्योतिहीन हो गई है,