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अहङ्कार

करूँगी। और प्रिय पापनाशी, सोचो, तुम्हारी दशा कितनी करूणाजनक होगी जब तुम्हारी स्वर्गनाशिनी आत्मा उस ऊँचे स्थान पर बैठे हुए देखेगी कि मेरे ही देह की क्या छीछालेदर हो रही है? स्वयं ईश्वर जिसने हिसाब के दिन के बाद तुम्हे अनन्तकाल तक के लिए यह देह लौटा देने का वचन दिया है, चक्कर में पड़ जायगा कि क्या करूँ। वह उस मानव शरीर को स्वर्ग के पवित्र धाम में कैसे स्थान देगा जिसमें एक प्रेत का निवास है और जिससे एक जादूगरनी की माया लिपटी हुई है ? तुमने उस कठिन समस्या का विचार नहीं किया । न ईश्वर ही ने उस पर विचार करने का कष्ट उठाया । तुमसे कोई परदा नहीं। हम तुम दोनों एक ही हैं, ईश्वर बहुत विचारशील नहीं जान पड़ता । कोई साधारण जादूगर उसे घोर्त्रे में डाल सकता है, और यदि उसके पास आकाश, वज्र और मेघों की जलसेना न होती तो देहाती लौंडे उसकी डाढ़ी नोच कर भाग जाते, उससे कोई भयभीत न होता, और उसकी विस्तृत सृष्टि का अन्त हो जाता ! यथार्थ में उसका पुराना शत्रु सर्प उससे कहीं चतुर और दुरदर्शी है । सर्पराज के कौशल का पारावार नहीं है। वह कक्षाओं में प्रवीण है। यदि मैं ऐसी सुन्दरी हूँ तो इसका कारण यह है कि उसने मुझे अपने ही हाथों से रचा और यह शोभा प्रदान की। उसी ने मुझे शलों का गूंथना, अर्धकुसुमित अधरों से हँसना, और आभूषणों से अंगों को सजाना सिखाया । तुम अभी तक उसत माहात्म्य नहीं जानते । जब तुम पहली बार इस क़ब्र में आये तो तुमने अपने पैरों से उन सो को भगा दिया जो यहाँ रहते थे और उनके अंडों को कुचल डाला। तुम्हें इसकी लेशमात्र भी चिन्ता न हुई कि यह सर्प उसी सर्पराज के आत्मीय हैं। मित्र, मुझे भय है कि इस अवि-