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अहङ्कार

इसके कुछ समय बाद पापनाशी को एक स्वप्न हुआ। उसने निर्मल प्रकाश मे एक चौड़ी सड़क, बहते हुए नाले और लहलहाते हुए उद्यान देखे। सड़क पर अरिस्टोबालस और चेरियास अपने अरबी घोड़ों को सरपट दौड़ाये चले जाते थे, और इस चौगान दौड़ से उनका चित्त इतना उल्लसित हो रहा था कि उनके मुँह अरुणवर्ण हुए जाते थे। उनके समीप ही के एक पेशताक में खड़ा कवि कलिक्रान्त अपने कवित्त पढ़ रहा था। सफल गर्व उसके स्वर में काँपता था और उसकी आँखों चमकता था। उद्यान मे जेनास्थमीज़ पके हुए सेब चुन रहा था और एक सर्प को थप- कियाँ दे रहा था जिसके नीले पर थे। हरमोडोरस श्वेत वस्त्र पहने सिर पर एक रत्नजटित मुकुट रखे, एक वृक्ष के नीचे ध्यान में मग्न बैठा था। इस वृक्ष में फूलों की जगह छोटे-छोटे सिर लटक रहे थे जो मिश्र देश की देवियों की भाँति गिद्ध, वाज़ या उज्ज्वल चन्द्रमण्डल का मुकुट पहने हुए थे। पीछे की ओर एक जलकुण्ड के समीप बैठा हुआ निसियास नक्षत्रों की अनन्त- गति का अवलोकन भर रहा था।

तब एक स्त्री मुँह पर नक्काव डाले और हाथ में मेहदी की एक टहनी लिये पापनाशी के पास आई और बोली—

पापनाशी, इधर देख ! कुछ लोग ऐसे हैं जो अनन्त सौन्दर्य के लिए लालायित रहते है, और अपने नश्वर जीवन को अमर समझते हैं । कुछ ऐसे प्राणी भी है जो जड़ और विचार- शून्य हैं, जो कभी जीवन के तत्वों पर विचार ही नहीं करते। लेकिन दोनों ही केवल जीवन के नाते प्रकृति-देवी की आज्ञाओं का पालन करते हैं; वह केवल इतने ही से सन्तुष्ट और सुखी है कि हम जीते हैं, और संसार के अद्वितीय कलानिधि का गुण- गान करते हैं क्योंकि मनुष्य ईश्वर की मूर्तिमान स्तुति है।