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अहङ्कार

प्राणीमात्र का विचार है कि सुख एक निष्पाप, विशुद्ध वस्तु है, और सुखभोग मनुष्य के लिए वर्जित नहीं है। अगर इन लोगों का विचार सत्य है, तो पापनाशी, तुने नहीं के न रहे। तुम्हारा जीवन नष्ट हो गया । तुमने प्रकृति के दिये हुए सर्वोत्तम पदार्थ को तुच्छ समझा । तुम जानते हो तुम्हें इसका क्या दण्ड मिलेगा?

पापनाशी की नींद टूट गई।

इसी भाँति पापनाशी को निरन्तर शारीरिक वथा मानसिक प्रलोभनों का सामना करना पड़ता था। यह दुष्प्रेरणाएँ उसे सर्वत्र धेरै रहती थीं। शैतान एक पल के लिए भी उसे चैन न लेने देता । इस निर्जन जन में किसी बड़े नगर की सड़कों से भी अधिक प्राणी बसे हुए जान पड़ते थे। भूत-पिशाच हँस-हँसकर शोर मचाया करते और अगणित प्रेत, चुड़ैल आदि, और नाना प्रकार की दुरात्माएँ जीवन का साधारण व्यवहार करती रहती थीं। संध्या समय जब वह जलधारा की ओर जाता तो परियों और चुड़ैलें उसके चारों ओर एकत्र हो जाती और उसे अपने कामोत्तेजक नृत्यों में बांध ले जाने की चेष्टा करतीं। पिशाचों की अब उसले घरा भी भय न होता था। उसका उपहास करते, इस पर अश्लील व्यंग करते और बहुघा उस पर मुनिप्रहार भी कर देते। वह इन अपमानों से अत्यन्त दु:खी होता था। एक दिन एक पिशाच, जो इसकी बाँह से बड़ा नहीं था, उस रस्सी को चुरा ले गया जो वह अपनी कार में बाँधे था । अब वह बिल्कुल नंगा या । आवरण की छाया भी उसकी देह पर न थी। यह सबसे घोर अरमान था जो एक तपस्वी का हो सकता था।

पापनाशी ने सोचा—

मन तू मुझे कहाँ लिये जाता है ?