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अहङ्कार

पापनाशी है जो एक धर्माश्रम का अध्यक्ष था। प्रभु के सेवकों में मुझसे अधिक दु:खी और कोई न होगा।

पापनाशी का नाम सुनते ही सब योगियों ने खजूर को डालियाँ हिलाई और एक स्वर से उसकी प्रशंसा करने लगे। वह तपस्वी जो पहले बोला था विस्मय से चौंककर बोला—

क्या तुम वही संत पापानाशी हो जिसकी उज्ज्वल कीर्ति इतनी विख्यात हो रही है कि लोग अनुमान करने लगे थे कि किसी वह पूज्य ऐन्टोनी की बराबरी करने लगेगा? श्रद्धेय पिता, तुम्ही ने थायस नाम की वेश्या को ईश्वर के चरणों में रत किया ? तुम्हीं को तो देवदूत उठाकर एक उच्च स्तम्भ के शिखर पर बिठा आये थे, जहाँ तुम नित्य प्रभु मसीह के भोज में सम्मिलित होते थे। जो लोग उस समय स्तम्भ के नीचे खड़े थे, उन्होंने अपने नेत्रों से तुम्हारा स्वर्गोत्थान देखा । देवदूतों के पर श्वेत मेघावरण की भाँति तुम्हारे चारों ओर मंडल बनाये हुए थे, और तुम दाहना हाथ फैलाये मनुष्यों को आशीर्वाद देते जाते थे। दूसरे दिन जब लोगों न तुम्हें वहाँ न पाया तो उनकी शोक-ध्वनि उस मुकुटहीन स्तम्भ के शिखर तक जा पहुॅची। चारों ओर हाहाकार मच गया। लेकिन तुम्हारे शिष्य फ्लेषियन ने तुम्हारे आत्मोत्सर्ग की कथा कही और तुम्हारी जगह पर आश्रम का अध्यक्ष बनाया गया। किन्तु वहाँ पॉल नाम का एक मुर्ख भी था। शायद वह भी तुम्हारे शिष्यों में था। उसने जन- सम्मति का विरोध करने की चेष्टा की । उसका कहना था कि उसने स्वप्न में देखा है कि पिशाच उन्हें पकड़े लिये जाता है। जनता को यह सुनकर बड़ा क्रोध आया। उन्होंने उस को पत्थरों से मारना चाहा। चारों ओर से लोग दौड़ पड़े। ईश्वर ही जाने कैसे इस मूर्ख की जान बची। हाँ, वह बच अवश्य गया। मेरा