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अहङ्कार

हुई है, और मुझ पर, जिसने सदैव तेरी आज्ञाओं का पालन किया, कभी तेरी इच्छा और उपदेश के विरुद्ध आचरण नहीं किया, तेरी इतनी अकृपा है! तेरा न्याय कितना रहस्यमय है और तेरी व्यवस्थाएँ कितनी दुग्रार्ह्य!

जोजीमस ने अपने हाथ फैलाकर कहा—

पूज्य पिता, देखिये, क्षितिज के दोनों ओर काली काली श्रृंखलाएं चली आ रही है, मानो चीटियाँ किसी अन्य स्थान को जा रही हों। यह सब हमारे सहयात्री है जो पिता ऐन्टोनी के दर्शन को आ रहे हैं।

जब यह लोग उन यात्रियों के पास पहुॅचे तो उन्हें एक विशाल दृश्य दिखाई दिया। तपस्वियों की सेना तीन वृहद् अर्धगोलाकार पंक्तियों में दूर तक फैली हुई थी। पहली श्रेणी में मरुभूमि के वृद्ध तपस्वी थे, जिनके हाथों मे सलीवे थीं और जिनकी दाढ़ियाँ ज़मीन को छू रही थीं। दूसरी पक्ति में पफ्रायम और सेरापियन के तपस्वी और नील के तटवर्ती प्रान्त के व्रतधारी विराज रहे थे। उनके पीछे वे महात्मागण थे जो अपनी दूरवर्ती पहाड़ियों से आये थे। कुछ लोग अपने सँवलाये और सूखे हुए शरीर को बिना सिले हुए चीथड़ों से ढके हुए थे, दूसरे लोगो की देह पर वस्त्रों की जगह केवल नरकट की हड्डियाँ थीं जो चेत की डालियों को ऐंठ कर बाँध ली गई थीं। कितने ही बिल्कुल नगे थे लेकिन ईश्वर ने उनकी नग्नता को भेड़ के से घने-घने बालों से छिपा दिया था। सभों के हाथो में खजूर की डालियाँ थीं। उनकी शोमा ऐसी थी मानो पन्ने के इन्द्रधनुष हों अथवा उनकी उपमा स्वर्ग की दीवारों से दी जा सकती थी।

इतने विस्तृत जनसमूह में ऐसी सुव्यवस्था छाई हुई थी कि पापनाशी को अपने अधीनस्थ तपस्वियों को खोज निकालने में