लेशमात्र भी कठिनाई न पड़ी। वह उनके समीप जाकर खड़ा हो गया किन्तु पहले अपने मुँह को कनटोप से अच्छी तरह ढक लिया कि उसे कोई पहचान न सके और उनकी धार्मिक आकांक्षा में बाधा न पड़े।
सहसा असंख्य कंठों से गगनभेदी नाद उठा—
वह महात्मा, वह महात्मा आये ! देखो वह मुतात्मा है जिसने नरक और शैतान को परास्त कर दिया है। जो ईश्वर का चहेता, हमारा पूज्य पिता ऐन्टोनी है !
तब चारों ओर सन्नाटा छा गया और प्रत्येक मस्तक पृथ्वी पर झुक गया।
उस विस्तीर्ण मरुस्थल में एक पर्वत के शिखर पर से महात्मा ऐन्टोनी अपने दो प्रिय शिष्यों के हाथों के सहारे, जिनके नाम मकेरियस और अमेथस थे आहिस्ता-आहिस्ता उतर रहे थे। वह धीरे-धीरे चलते थे पर उनका शरीर अभी तक तीर की भांति सीधा था, और उनसे उनकी असाधारण शक्ति प्रकट होती थी। उनकी श्वेत दाढ़ी चौड़ी छाती पर फैली हुई थी, और उनके मुँड़े हुए चिकने सिर पर प्रकाश की रेखाएँ यो जगमगा रही थीं मानो भूसा पैग़म्बर का मस्तक हो । उनकी आँखों में उकाव की आँखों की-सी तीव्र ज्योति थी, और उनके गोल कपोलों पर बालकों का सा मधुर मुसक्यान था। अपने भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए वह अपनी बाँहें उठाये हुए थे, जो एक शताब्दि के असा- धारण और अविश्रान्त परिश्रम से जर्जर हो गई थी। अन्त में उनके मुख से यह प्रेममय शब्द उच्चरित हुए—
ऐ जेकब, तेरे मंडप कितने विशाल, और ऐ इसराइल; तेरे शामियाने कितने सुखमय है !
'इसके एक क्षण के उपरान्त वह जीती-जागती दीवार एक