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अहङ्कार

सिरे से दूसरे सिरे तक मधुर मेघध्वनि की भाँति इस भजन से गुज्जारित हो गई—

'धन्य है यह प्राणी जो ईश्वर भीरू है !'

ऐन्टोनी अमेथस और मफेरियस के साथ वृद्ध तपस्वियों, अवधारियों और ब्रह्मचारियों के बीच में से होते हुए निकले । यह महात्मा जिसने स्वर्ग और नरक दोनों ही देखा था, यह तपस्वी जिसने एक पर्वत के शिखर पर बैठे हुए ईसाई धर्म का संचालन किया था, यह ऋषि जिसने विधर्मियों और नास्तिकों का क़ाफ़िया तग कर दिया था, इस समय अपने प्रत्येक पुत्र से स्नेहमय शब्दों मे बोलता था, और प्रसन्नमुख उनसे विदा माँगता था; किन्तु आज उसकी स्वर्गयात्रा का शुभ दिवस था। परमपिता ईश्वर ने आज अपने लाड़ले बेटे को अपने यहाँ आने का निमन्त्रण दिया था।

उसने एफ्रायम और सिरेपियन के अध्यक्षों से कहा—

तुम दोनों बहुसंख्यक सेनाओं के नेतृत्व और सेना-सचा- लन मे कुशल हो इसलिए तुम दोनों स्वर्ग में स्वर्ण के सैनिक- वस्त्र धारण करोगे और देवदूतों के नेता मीकायेल अपनी सेनाओं के सेनापति की पड़वी तुम्हे प्रदान करेंगे।

वृद्ध पालम को देखकर उन्होंने उसे आलिंगन किया और बोले—

देखो, यह मेरे समस्त पुत्रों से सज्जन और दयालु है । उस की आत्मा से ऐसी मनोहर सुरभि प्रस्फुटित होती है जैसी उसकी कलियों के फूलों से, जिन्हें वह नित्य बोता है।

संत ज़ोखीमस को उन्होंने इन शब्दों में सम्बोधित किया—

तू कभी ईश्वरीय दया और क्षमा से निराश नहीं हुआ, इस—