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अहङ्कार

क्षितिज से दूसरी क्षितिज तक नज़र दौड़ाई । सहसा उसकी दृष्टि पापनाशी पर जा पड़ी । दैवी भय से उसका मुँह पीला पड़ गया और उसके नेत्रों से अश्य ज्वाला निकलने लगी।

उसने एक लम्बी साँस लेकर कहा—

मैं तीन पिशाचों को देख रहा हूँ जो उमंग से भरे हुए इस मनुष्य को पकड़ने की तैयारी कर रहे हैं। उनमें से एक का आकार एक स्तम्भ की भांति है, दूसरे का एक स्त्री की भाँति, और तीसरे का एक जादुगर की भाँति । तीनों के नाम गर्म लोहे से दाग़ा दिये गये हैं— एक का मस्तक पर, दूसरे का पेट पर और तीसरे का छाती पर, और वे नाम हैं—अहंकार, विलास-प्रेम और शंका । बस, मुझे और कुछ नहीं सूझता ।

यह कहने के बाद पॉल की आँखें फिर निष्प्रभ हो गई, मुँह नीचे को लटक गया, और वह पूर्ववत् सीधा-सादा मालूम होने लगा।

जब पापनाशी के शिष्यगण ऐन्टोनी की ओर सचिन्त और सशंक भाव से देखने लगे तो उन्होंने यह शब्द कहे—

ईश्वर ने अपनी सच्ची व्यवस्था सुना दी। हमारा कर्तव्य है कि हम उसको शिरोधार्य करें और चुप रहें। असन्तोष और गिला उसके सेवकों के लिए उपयुक्त नहीं ।

यह कहकर वह आगे बढ गये । सूर्य ने अस्ताचल को प्रयाण किया और उसे अपने अरुण प्रकाश से आलोकित कर दिया। सन्त ऐन्टोनी की छाया देवी लीला से अत्यन्त दीर्घ रूप धारण करके उनके पीछे, एक अनन्त गलीचे की भाँति फैली हुई थी, कि सन्त ऐन्टोनी की स्मृति भी इस भाँति दीर्घजीवी होगी, और लोग अनन्त काल तक उसका यश गाते रहेंगे।

किन्तु पापनाशी वज्राहत की भाँति खड़ा रहा। उसे न कुछ