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अहङ्कार

सूझता था, न कुछ सुनाई देता था। यही शब्द उसके कानों में गूँज रहे थे—

'थायस मरणासन्न है!

उसे कभी इस बात का ध्यान ही न आया था। बीस वर्षों तक निरन्तर उसने मोमियाई के सिर को देखा था, मृत्यु का स्वरूप उसकी आँखों के सम्मुख रहता था । पर यह विचार कि मृत्यु एक दिन थायस की आँखें बन्द क़र देगी उसे घोर पाश्चर्य में डाल रहा था।

'थायस मर रही है ! इन शब्दों में कितना विस्मयकारी और भयकर आशय है ! थायस मर रही है, वह अब इस लोक में न रहेगी, तो फिर सूर्य का, फूलों का, सरोवरों का और समस्त सृष्टि का उद्देश्य ही क्या? इस ब्रह्माण्ड ही की क्या आवश्यकता है ! सहसा यह झपटकर चला—'इसे देखूँगा, एक बार फिर उससे मिलूँगा!' वह दौड़ने लगा। उसे कुछ खबर न थी कि वह कहाँ जा रहा है, किन्तु अंतःप्रेरणा उसे अविचल रूप से सक्ष्य की ओर लिये जाती थी, वह सीधेनील नदो की ओर चला जा रहा था। नदी पर उसे पालों का एक समूह तैरता हुआ दिखाई पड़ा । वह कूद कर एक नौका में जा बैठा, जिसे हब्शी चला रहे थे, और यहाँ नौका के मस्तक पर पीठ टेक कर, आखों से यात्रा मार्ग का भक्षण करता हुआ, यह क्रोध और वेदना से बोला—

आह ! मैं कितना मूर्ख हूँ कि थायस को पहले ही अपना न कर लिया जव समय था! कितना मूर्ख हूँ कि समझा कि संसार में थायस के सिवा और भी कुछ है ! कितना पागलपन था ! मैं ईश्वर के विचार में आत्मोद्धार की चिन्ता में, अनन्त जीवन की आकांक्षा में रत रहता; मानो थायस को देखने के बाद भी इन