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अहङ्कार

पाखण्डों में कुछ महत्व था! मुझे उस समय कुछ न सूझा कि उस स्त्री के एक चुम्बन में अनन्त सुख भरा हुआ है, और उसके बिना जीवन निरर्थक है, जिसका मूल्य एक दुस्वप्न से अधिक नहीं । मूर्खों ! तूने उसे देखा, फिर भी तुझे परलोक के सुखों की इच्छा बनी रही ! अरे कायर, तू उसे देखकर भी ईश्वर से डरता रहा ! ईश्वर! स्वर्ग ! अनादि ! यह सब त्या गोरखधन्धा है ! उनमें रखा हो क्या है, और क्या वह उस आनन्द का अल्पांश भी दे सकते हैं जो तुझे उससे मिलता ! अरे अभागे, निर्बुद्धि, मिथ्यावादी मूर्ख, सो थायस के अधरों को छोड़कर ईश्वरीय कृपा को अन्यत्र खोजता रहा! तेरी आँखों पर किसने परदा डाल दिया था ? उस प्राणी का सत्यानाश हो जाय जिसने उस समय तुझे अन्धा बना दिया था। तुझे दैवी कोर का क्या भय था जब तू उसके प्रेम का एक क्षण भी आनन्द उठा लेता ; पर तूने ऐसा न किया। उसने तेरे लिए अपनी बाँहे ला दी थीं जिनमें मांस के साथ फूलों का सुगन्ध मिश्रित था, और तूने अपने को उसके उन्मुक्ल पक्ष के अनुपम सुधा-सागर में अपने को प्लावित न कर दिया। तू नित्य इस द्वेष-ध्वनि पर कान लगाये रहा जो तुझसे कहती थी भाग, भाग ! अन्धे, अन्धे, भाग्यहीन अन्धे! हा शोक! हा पश्चाताप हा निराश! नरक में उसे कभी न भूलनेवाली घड़ी की आनन्दस्मृति ले जाने का और ईश्वर से यह कहने का अवसर हाथों से निकल गया कि 'मेरे मांस को जला, मेरी धमनियों से जितना रक्त है उसे चूस ले, मेरी सारी हड्डियों को चूर-चूर कर दे, लेकिन तू मेरे हृदय से उस सुखद-स्मृति को नहीं निकाल सकता, जो चिरकाल वन मुझे सुगन्धित और प्रमुदित रखेगी !' थायस भर रही है !' ईश्वर तु कितमा हास्यास्पद है ! तुझे कैसे बताऊँ कि मैं तेरे नरकलोक