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अहङ्कार

को तुच्छ समझता हूँ, उसकी हँसी उड़ाता हूँ ! थायस मर रही है, वह मेरी कमी न होगी, कभी नहीं, कभी नहीं!

नौका तेज़ धारा के साथ बहती जाती थी और वह दिन के दिन पेट के बल पड़ा हुआ बार-बार कहता था—

कभी नहीं ! कभी नहीं !! कमी नहीं !!!

तब यह विचार आने पर कि उसने औरों को अपना प्रेम- रस चखाया, केवल मै ही वचित रहा ; उसने संसार को अपने प्रेम की लहरों से प्लावित कर दिया और मैं उसमें ओठों को भी न तर कर सका, वह दाँत पीसकर उठ बैठा और अन्तर्वेदना से चिल्लाने लगा। वह अपने नखों से अपनी छाती को खरोंचने और अपने हाथों को दाँतों से काटने लगा।

उसके मन में यह विचार उठा—

यदि मैं उसके सारे प्रेमियों का संहार कर देखा तो कितना अच्छा होता!

इस हत्याकाण्डकी कल्पना ने उसे सरस हत्या-तृष्णा से आन्दोलित कर दिया। वह सोचने लगा कि वह निसियास का खूब आराम से मजे ले-लेकर वध करेगा और उसके चेहरे को वरावर देखता रहूॅगा कि कैसे उसकी जान निकलती है । तब अकस्मात् उसका क्रोधावेग द्रवीभूत हो गया। वह रोने और सिसकने लगा। बह दीन और नर्म हो गया। एक अज्ञात विनयशीलता ने उसके चित्त को कोमल बना दिया। उसे यह आकांक्षा हुई कि अपने बालपन के साथी निसियास के गले में वाहे डाल दे और उस से कहे—

निसियास, मैं तुम्हे प्यार करता हूॅ क्योंकि तुमने उससे प्रेम किया है। मुझसे उसकी प्रेमचर्चा करो। मुझसे वह बातें कहो जो वह तुमसे किया करती थी।