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अहङ्कार

जिसमे उसका चित्त, उदास न हो और वह ईश्वर के सामने उससे कम सगीत-चातुर्य्य और कुशाग्रता न प्रगट करे जितनी वह मनुष्यों के सामने दिखाती थी। अनुभव से सिद्ध हुआ कि मैंने व्यवस्था करने में दूरदर्शिता और चरित्र-परिचय से काम लिया, क्योंकि थायस दिन मर बाँसुरी बजाकर ईश्वर का कीर्ति- गान करती रहती थी और अन्य देवकन्याएँ, जो उसको बसी की ध्वनि से आकर्षित होती थीं, कहतीं—हमे इस ज्ञान में स्वर्गकुंजों की बुलबुल की चहक का आनन्द मिलता है ! उसके स्वर्ग-संगीत से सारा आश्रम गुंजरित हो जाता था। पथिक मी अनायास खड़े होकर उसे सुनकर अपने कान पवित्र कर लेते थे। इस भाँति थायस तपचर्चा करती रही ; यहाँ तक कि साठ दिनों के बाद वह द्वार, जिस पर आपने मोहर लगा दी थी, आप-ही-आप खुल गया और वह मिट्टी की मुहर टूट गई यद्यपि उसे किसी मनुष्य ने बुआ तक नही । इस लक्षण से मुझे ज्ञात हुआ कि आपने उसके लिए जो प्रायश्चित्त किया था वह पूरा हो गया और ईश्वर ने उसके सब अपराध क्षमा कर दिये। उसी समय से वह मेरी अन्य देवकन्याओं के साधारण जीवन में भाग लेने लगी है । उन्हीं के साथ काम-धंधा करती है, उन्ही के साथ ध्यान उपासना करती है। वह अपने वचन, और व्यवहार की नम्रता से उनके लिए एक आदर्श परित्र थी, और उनके बीच में पवित्रता की एक मूर्ति-सी जान पड़ती थी। कभी-कभी वह मनमलिन हो जाती थी, किन्तु वे घटाएँ जल्द ही कट जाती थीं और फिर सूर्य का विहॅसित प्रकाश फैल जाता था। जब मैंने देखा कि उसके हृदय में ईश्वर के प्रति भक्ति, आशा और प्रेम के भाव उदित हो गये हैं, तो फिर मैने उसके अभिनय-कला-नैपुण्य का उपयोग करने में विलम्ब नहीं किया; यहाँ तक कि मैं उसके सौन्दर्य