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अहङ्कार


यह कहकर वह चुप हो गई। उसका सिर पीछे को झुक गया।

यमदूतों ने उसे घेर लिया था और अन्तिम प्राणवेदना के श्वेत बुन्दों ने उसके माथे को आर्द्र कर दिया था। एक कबूतर अपने करुण क्रन्दन से उस स्थान की नीरवता को भंग कर रहा था। तब पापनाशी की सिसकियाँ देवकन्याओं के भजनों के साथ सम्मिश्रित हो गई—

'मुझे मेरी कालिमाओं से भलीभाँति पवित्र कर दे और मेरे पापों को धो दे, क्योंकि मैं अपने कुकर्मों को स्वीकार करती हूँ, और मेरे पातक मेरे नेत्रों के सम्मुख उपस्थित हैं।'

सहसा थायस उठकर शैया पर बैठ गई। उसकी बैंगनी आँखें फैल गईं, और वह तल्लीन होकर वाहों को फैलाये हुए दूर की पहाड़ियों की ओर ताकने लगी। तब उसने सष्ट और उत्फुल्ल स्वर मे कहा—

वह देखो, अनन्त प्रभात के गुलाब खिले हुए हैं!

उसकी आँखों में एक विचित्र स्फूति आ गई, उसके मुख पर हलका-सा रंग छा गया। उसकी जीवन-ज्योति चमक उठी थी, और वह पहले से भी अधिक सुन्दर और प्रसन्नवदन हो गई थी।

पापनाशी घुटनों के बल बैठ गया, अपनी लम्बी, पतली बाहें उसके गले में डाल दी, और बोला—ऐसे स्वरों में जिसे वह स्वयं न पहचान सकता था कि यह मेरी ही आवाज़ है—

प्रिये, अभी मरने का नाम न ले। मैं तुझ पर जान देता हूँ। अभी न मर! थायस, सुन, कान धरकर सुन, मैंने तेरे साथ छल किया है, तुझे दग़ा दी है। मैं स्वयं भ्रान्ति में पड़ा हुआ था। ईश्वर, स्वर्ग, आदि यह सब निरर्थक शब्द हैं। मिथ्या हैं। इस ऐहिक जीवन से बढ़कर और कोई वस्तु, और कोई पदार्थ,