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अहंङ्कार

मेरी यात्रा समाप्त हुई, तुझे धन्यवाद देता हूँ। दयानिधि, जिस प्रकार तूने इन इंजीर के पौधों पर बोस के बूँदों की वर्षा की है, उसी प्रकार थायस पर, जिसे तूने अपने प्रेम से रचा है, अपनी दया की वृष्टि कर। मेरी हार्दिक इच्छा है कि यह तेरी प्रेममयी रक्षा के अधीन एक नवविकसित पुष्प की भाँति, स्वर्ग तुल्य यरुशलम में अपनी यश और कीर्ति का प्रसार करे।'

और तदुपरान्त उसे जब कोई वृक्ष फूलों से सुशोभित अथवा कोई चमकीले परों वाला पक्षी दिखाई देता तो उसे थायस की याद आती। कई दिन तक नदी के बायें किनारे पर, एक उर्वर और आबाद प्रान्त मे चलने के बाद वह इस्कन्द्रिया नगर में पहुॅचा। जिसे यूनानियों ने रमणीक' और 'स्वर्णमयी' की उपाधि दे रखी थी। सूर्य्योदय की एक घड़ी बीत चुकी थी जब उसे एक पहाड़ी के शिखर पर बह विस्तृत नगर नजर आया, जिसकी छतें कंचनमयी प्रकाश में चमक रही थीं। वह ठहर गया और मन में विचार करने लगा—'यही वह मनोरम भूमि है जहाँ मैने मृत्यु लोक में पदार्पण किया, यहीं मेरे पापमय जीवन की उत्पत्ति हुई, यहीं मैंने विपाल वायु का आलिंगन किया, इसी विनाशकारी रक्त सागर में मैंने जल-विहार किये ! वह मेरा पालना है जिसके घातक गोद में मैंने काम-मधुर लोरियाँ सुनी! साधारण बोलचाल में, कितना प्रतिभाशाली स्थान है, कितना गौरव से भरा हुआ । इस- कन्द्रिया ! मेरी विशाल जन्मभूमि! तेरे पालक तेरा पुत्रवत् सम्मान करते है, यह स्वाभाविक है। लेकिन योगी प्रकृति को अवहेलनीय समझता है, साधु वहिर्रूप को तुच्छ समझता है, प्रभु मसीह का दास जन्मभूमि को विदेश समझता है, और तपस्वी इस पृथ्वी का प्राणी ही नहीं। मैंने अपने हृदय को तेरी ओर से फेर लिया है। मैं तुमसे घृणा करता हूँ। मैं तेरी सम्पत्ति को, तेरी विद्या को,