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अहंङ्कार

तेरे शास्त्रों को, तेरे सुख-विलास को, और तेरी शोभा को घृणित समझता हूँ। तू पिशाचों का क्रीड़ास्थल है, तुमे धिक्कार है!अर्थ- सेवियों की अपवित्र शैय्या, नास्तिकता का वितण्ड क्षेत्र, तुझे धिक्कार है! और जिबरील, तू अपने पैरों से उस अशुद्ध वायु को सुद्ध कर दे जिसमें मैं साँस लेनेवाला हूँ, जिसमें यहाँ के विषैले कीटाणु मेरी आत्मा को भ्रष्ट न कर दें।

इस तरह अपने विचारोग्दारों को शान्त करके, पापनाशी शहर में प्रविष्ट हुआ। यह द्वार पत्थर का एक विशाल मण्डप था। इसके मेहराब की छाँह में कई दरिद्र भिक्षुक बैठे हुए पथिकों के सामने हाथ फैजा-फैजाकर खैरात माँग रहे थे।

एक वृद्धा स्त्री ने जो वहाँ घुटनों के बल बैठी थी, पापनाशी की चादर पकड़ लो और उसे चूमकर बोली—ईश्वर के पुत्र, मुझे आशीर्वाद दो कि परमात्मा मुझसे संतुष्ट हो। मैंने पारलौकिक सुख के निमित्त इस जीवन में अनेक कष्ट झेले। तुम देव पुरुष हो, ईश्वर ने तुम्हें दुखी प्राणियों के कल्याण के लिये भेजा है, अतएव तुम्हारी चरण रज कंचन से भी बहुमूल्य है।

पापनाशी ने वृद्धा को हाथों से स्पर्श करके आशीर्वाद दिया। लेकिन वह मुश्किल से वीस क़दम चना होगा कि लड़कों का एकगोल ने उसका मुँह चिढ़ाने और उस पर पत्थर फेंकने शुरू किये और तालियां बजाकर कहने लगे—ज़रा आपकी विशालमूति देखिये! आप लंगूर से भी काले हैं, और आपकी दाढ़ी बकरे की डाढ़ी से भी लम्बी है। बिलकुल भुतना मालूम होता है। इसे किसी बारा में मार कर लटका दो कि चिड़ियाँ हौवा समझ कर उड़ें। लेकिन नहीं, बाग में गया तो सेंत में सब फूल नष्ट हो जायेंगे। उसकी सूरत ही मनहूस है। इसका मांस कौओं को खिला दो। यह कहकर उन्होंने पत्थरों की एक बाढ़ छोड़ दी।