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अहङ्कार

दो अनाज के खेत बेच डाले और उसके विरह वर्णन मे निकृष्ट कविताओं से भरे हुए तीन ग्रन्थ लिख डाले। यह निर्विवाद है कि रूप-लालित्य संसार की सबसे प्रवल शक्ति है, और यदि हमारे शारीर की रचना ऐसी होती कि हम यावजीवन उस पर अधि- कृति रह सकते वो हमे दार्शनिकों के जीव और भ्रम, माया और मोह, पुरुष और प्रकृति की जरा भी परवाह न करते। लेकिन जात्र, मुझे यह देखकर आश्चर्य होता है कि तुम अपनी कुटी जोड़कर केवल 'थायस' की चर्चा करने के लिए आये हो।

यह कहकर निसियासने एक ठण्डी साँस खींची। पापनाशी से भीत नेत्रो से देखा उसको यह कल्पना ही असम्भवमालूम होती थी कि कोई मनुष्य इतनी सावधानी से अपने पापों को प्रगट करवा सकता है। उसे जरा भी आश्चर्य न होता अगर अमीन फट जातभी और उसमें से अग्निवाला निकल कर उसे निगल जाती। लेकिन जमीन स्थिर बनी रही, और निसियास हाथ पर मस्तक रखे चुपचाप बैठा हुआ अपने पूर्वजीवन की स्मृतियों पर म्लान- मुखहरी मुसकराता रहा। योगी तब उठाऔर गम्भीर स्वर में बोला—

नही निसियास, मैं अपना एकान्तवास छोड़ कर इस पिशाच नगरी मे थायस की चर्चा करने नहीं आया हूँ। बल्कि, ईश्वर की सहायता से मैं इस रमणी को अपवित्र-विलास के बंधनों से मुक्त कर दूँगा और उसे प्रभु मसीह की सेवार्थ भेंट करूँगा। अगर निरा- कार ज्योति ने मेरा साथ न छोड़ा तो थायस अवश्य इस नगर को त्याग कर किसी वनिता धर्माश्रम में प्रवेश करेगी।

निसियास ने उत्तर दिया—मधुर कलाओं और लालित्य की देवी, 'वीनस' को रुष्ट करते हो तो सावधान रहना! उसकी शक्ति अपार है और यदि तुम इसकी प्रधान उपासिका को ले जाओगे तो वह तुम्हारे किपर अवश्य वज्रघान करेगी।