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अहङ्कार

इस दृश्य से चकित होकर पापनाशी ने उस भयंकर जन्तु की ओर देखा जो उसे यहाँ लाया था। कदाचित् उससे पूछना चाहता था कि यह क्या रहस्य है? पर वह जन्तु अदृश्य हो गया था और उसकी जगह एक स्त्री मुँह पर नकाब डाले खडी थी। वह बोली—

योगी, खूब आँखें खोलकर देख। इन भ्रष्ट आत्माओं का दुराग्रह इतना जटिल है कि नरक में भी उनकी भ्रांति शांत नहीं हुई। यहाँ भी वह उसी माया के खिलौने बने हुए हैं। मृत्यु ने उनके भ्रमजाल को नहीं तोड़ा क्योंकि प्रत्यक्ष ही, केवल मर जाने ही से ईश्वर के दर्शन नहीं होते। जो लोग जीवन भर अज्ञानांध- कार में पड़े हुए थे, वह मरने पर भी मूर्ख ही बने रहेगे। यह दैत्याप ईश्वरीय न्याय के यंत्र ही तो हैं। यही कारण है कि बामायें उन्हें न देखती हैं, न उनसे भयभीत होती हैं। वह सत्य के ज्ञान से शून्य थे, अतएव उन्हें अपने अकर्मों का भी ज्ञान न था। उन्होंने जो कुछ किया अज्ञान की अवस्था में किया। उन पर बह दोषारोपण नहीं कर सकता फिर वह उन्हें दंड भोगने पर कैसे मजबूर कर सकता है?

पापनाशी ने उत्तेजित होकर कहा—ईश्वर सर्वशक्तिमान है, वह सब कुछ कर सकता है।

नकाबपोश जी ने उत्तर दिया—नहीं, वह असत्य को सत्य नहीं कर सकता। उनको दंड-भोग के योग्य बनाने के लिए पहले उनको अज्ञान से मुक्त करना होगा, और जब वह अज्ञान से मुक्त होजायेंगे तो वह धर्मात्माओं की श्रेणी में आ जायँगे!

पापनाशी उद्विग्न और मर्माहत होकर फिर खोह के किनारों पर झुका। उसने निसियास की छाया को एक पुष्पमाला सिर पर जाते, और एक झुलसे हुए मेंहदी के वृक्ष के नीचे बैठे देखा। उसकी काल में एक प्रति रूपवती वेश्या बैठी हुई थी और ऐसा