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अहङ्कार

विदित होता था कि वह प्रेम की व्याख्या कर रहे हैं। वेश्या की सुखश्री मनोहर और प्रतिभ थी। उन पर जो अग्नि की वर्षा हो रही थी वह ओस की बूँदों के समान सुखद और शीतल थी, और बह झुलसती हुई भूमि उनके पैरों से कोमल तृण के समान दब जाती थी। यह देखकर पापनाशी की क्रोधाग्नि ज़ोर से भड़क उठी। उसने चिल्लाकर कहा—ईश्वर, इस दुराचारी पर वज्राघात कर! यह निसियास है। उसे ऐसा कुचल कि वह रोये, कराहे और क्रोध से दाँत पीसे। उसने थायस को भ्रष्ट किया है।

सहसा पापनाशी की आँखे खुल गई। वह एक बलिष्ठ माझी की गोद मे था। माझी बोला—बस, मित्र, शान्त हो जाओ। जलदेवता साक्षी हैं कि तुम नींद में बुरी तरह चौंक पड़ते हो। अगर मैंने तुम्हें सम्हाल न लिया होता तो तुम अब तक पानी में सुमकियों खाते होते। आज मैंन ही तुम्हारो जान बचाई।

पापनाशी बोला—ईश्वर की दया है।

वह तुरन्त उठ खड़ा हुआ और इस स्वप्न पर विचार करता हुआ आगे बढ़ा। अवश्य ही यह दुस्स्वप्न है। नरक को मिथ्या समझना ईश्वरीय न्याय का अपमान करना है। इस स्वप्न का प्रेषक कोई पिशाच है।

ईसाई तपस्वियों के मन में नित्य यह शंका उठती रहती कि इस स्वप्न का हेतु ईश्वर है या पिशाच। पिशाचादि उन्हें नित्य घेरे रहते थे। मनुष्यों से जो मुँह मोड़ता है उसका गलापिशाचों से नहीं चूट सकता। मरुभूमि पिशाचों का क्रोडाक्षेत्र है। वहाँ नित्य उनका शोर सुनाई देता है। तपस्वियों को प्रायः अनुभव से, था स्वप्न की व्यवस्था से ज्ञान हो जाता है कि मर्द ईश्वरीय प्रेरणा है या पैशाचिक प्रलोभन। पर कभी-कमी बहुत-यत्न करने पर भी उन्हें भ्रम हो जाता था। तपस्वियों और पिशाचों में