पृष्ठ:अहंकार.pdf/६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४४
अहङ्कार

कभी करूण स्वरों में गाना होता था। अभिनय का एक भाग समाप्त होते ही दर्शकों ने तालियाँ बजाई।

पापनाशी जो प्रत्येक विषय में धर्म-सिद्धान्तों का व्यवहार किया करता था, बोला—अभिनय से सिद्ध होता है कि सत्ताहीन देवताओं के उपासक कितने निर्दयी होते हैं।

डोरियन ने उत्तर दिया—यह दोष प्रायः सभी मतान्तरों में पाया जाता है। सौभाग्य से महात्मा एपिक्युरस ने, जिन्हें ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त था, मुझे अश्य के मिथ्या शंकाओंसे मुक्त कर दिया।

इतने में अभिनय फिर शुरू हुआ। हेक्युवा, जो पालिक्सेना की माता थी, उस छोलदारी से बाहर निकली जिसमें वह कैद थी। उसके श्वेत केश विखरे हुए थे, कपडे फटकर तार-तार हो गये थे। उसकी शोकमूर्ति देखते ही दर्शकों ने वेदनापूर्ण आह भरी। हेक्युवा को अपनी कन्या के विषादमय अन्त का एक स्वप्न द्वारा ज्ञान हो गया था। अपने और अपनी पुत्री के दुर्भाग्य पर वहसिर पीटने लगी। उलाइसेस ने उसके समीप जाकर कहा— पलिक्सेना पर से अपना मातृस्नेह अब उठा लो। वृद्धा स्त्री ने अपने बाल नोच लिये, मुंह को नखों ले खसोटा और निर्दची योद्धा उलाइसेस के हाथों को चूमा, जो अब भी दयाशून्य शांति से कहता हुआ जान पड़ता था—

हेक्युवा, धैर्य्य से काम लो। जिस विपत्ति का निवारण नहीं हो सकता उसके सामने सिर झुकाओं। हमारे देश में भी कितनी ही मातायें अपने पुत्रों के लिए रो रही हैं जो आज यहाँ वृक्षों के नीचे मोहनिद्रा में मग्न हैं। और हेक्युवा ने, जो पहले एशिया के सबसे समृद्धिशाली राज्य की स्वामिनी थी और इस समय गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी हुई थीं, नैराश्य से धरती पर सिर पटक दिया।