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अहङ्कार

खला की मशालें जल रही थीं। खोह की दीवारों पर ईसाई-सिद्ध महात्माओं के चित्र बने हुए थे जो मशालों के अस्थिर प्रकाश में चलते फिरते, सजीव मालूम होते थे। उनके हाथों में खजूर की डालें थी और उनके इर्द गिर्द मेमने, कबूतर, फ़ारखते और अंगूर की बेलें चित्रित थीं। इन्हीं चित्रों में थायस ने ईसू को.. पहचाना, जिनके पैरों के पास फूलों का ढेर लगा हुआ था।

खोह के मध्य में, एक पत्थर के जलकुण्ड के पास, एक वृद्ध पुरुष नाल रङ्ग का ढीला करता पहने खड़ा था। यद्यपि उसके वस्त्र बहुमूल्य थे पर वह अत्यन्त दीन और सरल जान पड़ता था। उसका नाम विशप जीवन था, जिसे बादशाह ने देश से निकाल दिया था। अब वह भेड़ के ऊन कातकर अपना निर्वाह करता था उसके समीप दो गरीब खड़के खड़े थे। निकट ही एक बुढ़िया हव्शिन एक छोटा सा सुफेद कपड़ा लिये खड़ी थी। अह भद ने थायस को जमीन पर बैठा दिया और विशप के सामने घुटनों के बल बैठकर बोला—

पूज्य पिता, यही वह छोटी लड़की है जिसे मैं प्राणों से भी अधिक चाहता हूॅ। मैं उसे आपकी सेवा में लाया हूँ कि आप अपने वचनानुसार, यदि इच्छा हो तो, उसे बप्तिसमा प्रदान कीजिये।

यह सुनकर बिशपने हाथ फैलाया। उनकी उँगलियों के नाखून उखाड़ लिए गये थे क्योंकि आपत्ति के दिनों मे वह राजाज्ञा की प्रस्वा न करके अपने धर्म पर आरूढ़ रहे थे। थायस डर गई और अहमद की गोद में छिप गई, किन्तु विशप के इन स्नेहमय शब्दों ने उसे स्वस्थ कर दिया—प्रिय पुत्री; डरो मत। अहमद तेरा धर्म पिता है जिसे हम लोग थियोडोरा कहते हैं, और यह वृद्धा स्त्री तेरी धर्म माना है जिसने अपने हाथों से तेरे लिए एक सूफेद बन तैयार किया है। इसका नाम नीतिदा है। वह इस जन्म