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अहङ्कार

प्रगट किया। उसकी भाषा बहुत ही पेचदार, अलंकृत, उलझी हुई थी। तत्व कम, शब्दाडम्बर बहुत था। थायस मंत्रमुग्ध-सी बैठी सुनती रही।

भोजन समाप्त हो जाने पर बिशप ने मेहमानों को थोड़ी सी शराब पिलाई। नशा चढ़ा तो वे बहक-बहक कर बातें करने लगे। एक क्षण के बाद अहमद और नीतिदाने नाचना शुरू किया। यह प्रेव नृत्य था। दोनों हाथ हिला-हिलाकर कमी एक दूसरे की तरफ लपकते, कमी दूर हट जाते। जब सवेरा होने में थोड़ी देर रह गई तो अहमद ने थायस को फिर गोद में उठाया और घर चला आया।

अन्य बालकों की भाँति थायस भी आमोदप्रिय थी। दिन भर वह गलियों में बालकों के साथ नाचती गाती रहती थी। रातको घर आती तब भी वही गीत गाया करती जिनका सिर-पैर कुछ न होता।

अब उसे अहमद जैसे शांत, सीधे-सादे आदमी की अपेक्षा लड़के लड़कियों की संगति अधिक रुचिकर मालूम होती। अहमद भी उसके साथ कम दिखाई देता। ईसाइयों पर अब बादशाह की क्रूर दृष्टि न थी, इसलिए वह अवाधरूप से धर्म-समायें करने लगे थो धर्मनिष्ठ अहमद इन सभाओं में सम्मिलित होने से कभी न चूकता। ससका धर्मोत्साह दिनों-दिन बढ़ने लगा। कभी-कभी वह बाजार में ईसाइयों को जमा करके उन्हें आनेवाले सुखों की शुभ सूचना देता। इसकी सूरत देखते ही शहर के भिखारी, मजदूर, गुलाम, जिनका कोई आश्रय न था, जो रातों को सड़क पर सोते थे, एकत्र हो जाते और वह उनसे कहता—ग़ुलामों के मुक्त होने के दिन निकट हैं,। न्याय जल्द आनेवाला है, धन के मतवाले चैन की नींद न सो सकेंगे। ईश्वर के राज्य में गुलामों