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अहङ्कार

साल पहले, थायस को गोद में लिए वह वड़े आनन्द से निकला था। जव उसके हाथ सलीब पर ठोंक दिये गये, तो उसने 'उफ', तक न किया, और एक भी अपशब्द उसके मुँह से न निकला! अन्त में बोला—मैं प्यासा हूँ!

तीन दिन और तीन रात उसे असह्य प्राण-पीड़ा भोगनी पड़ी। मानवशरीर इतना दुस्सह अंग-विच्छेद सह सकता है, असम्भव-सा प्रतीत होता था। बार-बार लोगों को ख्याल, होता था कि वह मर गया। मक्खियाँ आँखों पर जमा हो जाती, किन्तु सहसा उसके रक्त-वर्ण नेत्र खुल जाते थे। चौथे दिन प्रातःकाल उसने वालको के से सरल और मृदुस्वर में गाना शुरू किया—

मरियम, बता तू कहाँ गई थी, और वहाँ क्या देखा? तब उसने मुसकिरा कर कहा—

वह स्वर्ग के दूत मुझे लेने को आ रहे हैं। उनका मुख कितना तेजस्वी है। वह अपने साथ फल और शराब लिये आते हैं। उनके परों से कैसी निर्मल, सुखद वायु चल रही है।

और यह कहते कहते उसका प्राणान्त हो गया।

मरने पर भी उसका मुखमंडन आत्मोल्लास से उद्दीप्त हो रहा था। यहाँ तक कि वे सिपाही भी जो सलीव की रक्षा कर रहे थे विस्मित हो गये। बिशप जीवन ने आकर शव का मृतक संस्कार किया, और ईसाई समुदाय ने महात्मा थियोडोर की कीर्ति को परमोज्ज्वल अक्षरों में अंकित किया।

अहमद के प्राणदण्ड के समय थायस का ग्यारहवाँ वर्ष पूरा हो चुका था। इस घटना से उसके हृदय को गहरा सदमा पहुँचा। उसकी आत्मा अभी इतनी पवित्र न थी कि वह अहमद की मृत्यु को उसके जीवन के समान ही मुबारक समझती, उसकी मृत्यु को उद्धार समझ कर प्रसन्न होती। उसके अबोध मन में