यह भ्रान्त बीज उत्पन्न हुआ कि इस संसार में वही प्राणी दया, धर्म का पालन कर सकता है जो कठिन से कठिन यातनायें सहने के लिए तैयार रहे। यहाँ सज्जनता का दबद्ध अवश्य मिलता है। उसे सत्कर्म से भय होता था कि कहीं मेरी भी यही दशा न हो। उसका कोमल शरार पीड़ा सहने में असमर्थ था।
वह छोटी ही उम्र में बादशाह के युवकों के साथ क्रीड़ा करने लगी ! सन्ध्या समय यह बूढ़े आदमियों के पीछे लग जाती और उनसे कुछ-न-कुछ ले मरती थी। इस भाँति जो कुछ मिलना उससे मिठाइयाँ और खिलौने मोल लेती। पर उसकी लोभिनी माता चाहती थी कि वह जो कुछ पाये वह मुझे दे । थायस इसे न मानती थी। इसलिए उसकी माता उसे मारा पीटा करती थी। माता की मार से बचने के लिए वह बहुधा घर से भाग जाती और शहरपनाह की दीवार के दरारों मे अन्य जन्तुओं के साथ छिपी रहती।
एक दिन उसकी माता ने इतनी निर्दयता से उसे पीटा कि यह घर से भागी और शहर के फाटक के पास चुपचाप पड़ी सिसक रही थी कि एक बुढ़िया उसके सामने जाकर खडी हो गई। वह थोड़ी देर तक मुग्ध भाव से उसकी ओर ताकती रही और तब बोली— ओ मेरी गुलाव, मेरी फूल-सी बच्ची! धन्य है तेरा पिता जिसने तुझे पैदा किया और धन्य है तेरी माता लिसने तुझे पाला।
थायस चुपचाप बैठी जमीन की ओर देखती रही। उसकी आँखे लाल थी, वह रो रही थी।
बुढ़िया ने फिर कहा—मेरी आँखों की पुतली, मुन्नी, क्या तेरी माता तुम जैसी देव कन्या को पाल पोसकर आनन्द से फूल नहीं जाती, और तेरा पिता तुझे देखकर गौरव से उन्मत्त नहीं हो जाता?