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अहङ्कार

थायस ने इस तरह भुनमुनाकर उत्तर दिया मानों मन ही में कह रही है—मेरा बाप शराब से फूला हुआ पीपा है और माता रक्त चुसनेवाली जोंक है!

बुढ़िया ने दायें बायें देखा कि कोई सुन तो नहीं रहा है, तब निशंक होकर अत्यन्त मृदु कंठ से बोली—अरे मेरी प्यारी आँखों की ज्योति, ओ मेरी खिली हुई गुलाब की कली, मेरे साथ चलो। क्यों इतना कष्ट सहती हो? ऐसे मां-बाप को झाड़ू मारो। मेरे यहाँ तुम्हें नाचने और हँसने के सिवाय और कुछ न करना पड़ेगा। मैं तुम्हें शहद के रसगुल्ले खिलाऊँगी, और मेरा बेटा तुम्हे आँखों की पुतली बनाकर रखेगा। वह बड़ा सुन्दर सजीला जवान है, उसकी दाढ़ी पर अभी बात भी नहीं निकले, गोरे रंग का कोमल स्वभाव का प्यारा लड़का है।

थायस ने कहा—मै शौक़ से तुम्हारे साथ चलूँगी, और उठ कर बुढ़िया के पीछे शहर के बाहर चली गई।

बुढ़िया का नाम मीरा था। उसके पास कई लड़के लड़कियों की एक मण्डली थी। उन्हे उसने नाचना, गाना, नकलें करना सिखाया था। इस मण्डली को लेकर वह नगर नगर घुमती थी, और अमीरों के जलसों में अब उनका नाचना गाना करा के अच्छा पुरस्कार लिया करती थी।

उसकी चतुर आँखों ने देख लिया कि यह कोई साधारण लड़की नहीं है। उसका उठान कहे देता था कि आगे चलकर वह अत्यन्त रूपवती रमणी होगी। उसने उसे कोड़े मार कर संगीत और पिंगल की शिक्षा दी। जब सितार के तालों के साथ उसके पैर न उठते तो वह उसकी कोमल पिंडलियों में चमड़े के तस्मे से मारती। उसका पुत्र जो हिजड़ा था थायस से वह द्वेष रखता था जो उसे स्त्री मात्र से था। पर वह नाचने में, नकल करने में, भाव बताने