पृष्ठ:अहंकार.pdf/८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६४
अहङ्कार

विह्वल होकर उसके पास आया और ऐसे मधुर स्वर में बोला जो प्रेम-स में सन्नी हुई थी—

थायस, यह मेरा परम सौभाग्य होता यदि तेरे अलकों में गुँधी हुई पुष्पमाला या तेरे कोमल शरीर का...आभूषण, अथवा तेरे चरणोंकी पादुका मैं होता। यह मेरी परम लालसा है कि पादुका की भाँति तेरे सुन्दर चरणों से कुचला जाता, मेरा प्रेमालिंगन तेरे सुकोमल शरीर का आभूषण और तेरी अलकराशि का पुष्प होता। सुन्दरी रमणी, मैं प्राणों को हाथ में लिये तेरी भेंट करने को उत्सुक हो रहा हूँ। मेरे साथ चल और हम दोनों प्रेम में मग्न होकर संसार को भूल जायें।

जब तक वह वोलता रहा, थायस उसकी ओर विस्मित होकर ताकती रही। उसे ज्ञात हुआ कि उसका रूप मनोहर है। अकस्मात् उसे अपने माथेपर ठंडा पसीना बहता हुआ जान पड़ा। वह हरी घासकी भाँति आई हो गई। उसके सिर में चार आने लगे, आँखों के सामने मेघघटा-सी उठती हुई जान पड़ी। युवक ने फिर वही प्रेमाकांक्षा प्रगट की, लेकिन थायस ने फिर इन्कार किया। उसके आतुर नेत्र, उसकी प्रेम-याचना सब निष्फल हुई, और जब उसने अधीर होकर उसे अपनी गोद में ले लिया और बलात् खींच ले जाना चाहा तो उसने निष्ठुरता से उसे हटा दिया। तब वह उसके सामने बैठकर रोने लगा। पर उसके हृदय में एक नवीन, अज्ञात और अलक्षित चैतन्यता उदित हो गई थी। वह अब भी दुराग्रह करती रही।

मेहमानों ने सुना तो बोले—यह कैसी पगली है? लोलस कुलीन, रूपयान, धनी है, और यह नाचने वाली युवती उसका अपमान करती है!

लोलस उस रात घर लौटा तो प्रेममद से मतवाला, हो रहा था। प्रातः काल वह फिर थायस के घर आया तो उसका मुख