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अहङ्कार

अपनी जगह स्वरक्षित करा लें। कविनन उसकी प्रशंसा में कवित्त कहते। लम्बी डाड़ियों वाले विज्ञानशास्त्री व्यायामशालाओं में उसकी निन्दा और उपेक्षा करते। जब उसका ताम जान सड़क पर से निकलता तो ईसाई पादरी मुँह फेर लेते थे। उसके द्वार की चौखट पुष्पमालाओं से ढकी रहती थी। अपने प्रेमियों से से इतना अतुल धन मिलता कि उसे गिनना मुशकिल था। तराज़ू, पर तौल लिया जाता था। कपण बूढों, की संग्रह की हुई समस्त सम्पत्ति उसके अपर कौड़ियों की भाँति लुटाई जाती थी। पर से गर्व न था, ऐंठन न थी। देवताओं की कृपा-दृष्टि और जनता की प्रशंसा-ध्वनि से उसके हृदय को गौरव-युक्त आनन्द होता था। सब की प्यारी वनकर वह अपने को प्यार करने लगी थी।

कई वर्ष तक ऐन्टिओकवासियों के प्रेम और प्रशंसा का सुख उठाने के बाद उसके मन में प्रबल उत्कण्ठा हुई कि इस्कन्द्रिया चलूँ और उस नगर में अपना ठाठ-वाट दिखाऊँ जहाँ बचपन में मैं नंगी और भूखी, दरिद्र और दुर्वल, सड़कों पर मारी-मारी फिरती थी, और गलियों की खाक छानती थी। इस्कन्द्रिया आँखे, बिछाये उसकी राह देखता था। उसने बड़े हर्ष से उसका स्वागत किया और उस पर मोती बरसाये। यह क्रीड़ाभूमि में आती तो धूम मच जाती। प्रेमियों और विवासियों के मारे उसे साँसान मिलती, पर वह किसी को मुँह न लगाती। घूसरा खोलना से जब न मिला तो उसने उसकी चिन्ता ही छोड़ दी थी। उस स्वर्ग-मुख की अब उसे आशा न थी।

नाउसके अन्य प्रेमियों में तत्वज्ञानी निसियास भी थानो विरक्त होने का दावा करने पर भी उसके प्रेम का इच्छुक था। वह धनवान था, पर अत्य धनपक्षियों की भाँति अभिमानी और