पृष्ठ:अहंकार.pdf/९

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ज़माने के लोग हैं, उनकी भाषा-शैली वही है, विचार भी उतने ही प्राचीन। उस समय की ईसाई दुनिया का आप को इतना स्पष्ट और सजीव ज्ञान हो जाता है जितना सैकड़ों इतिहासों के पन्ने उलटने से भी न हो सकता। ईसाई धर्म अपनी प्रारम्भिक दशा की कठिनाइयों में पड़ा हुआ था। उसके अनुयायी अधिकांश दीन, दुर्बल प्राणी थे जिन्हें अमीरों के हाथों नित्य कष्ट पहुँचा करता था। उच्चश्रेणी के लोग भोग विलास में डूबे हुए थे। दार्शनिकता की प्रधानता थी, भाखि-भांति के पादों का ज़ोर-शोर था। कोई प्रकृववादी था, कोई सुखवादी, कोई दु:ख वादी, कोई विरागवादी, कोई शंकावादी, कोई मायावादी। ईसाईमत, को विद्वान तथा शिक्षित समुदाय सुछ समझता था। ईसाई लोग भी भूत, प्रेत, टोना, बजार के कायल थे। आपको सभी बादों के माननेवाले मिलेंगे जिनका एक एक वाक्य प्रापको मुग्ध कर देगा। टिमातील, निसियास, कोटा, हरमोडोरस, जेनाथेमीस, थूकाइटील, यथार्थ में भिन्नगिन्न वादों ही के नाम है। ईसाई मत स्वयंबई सम्प्रदायों में विभक्त हो गया है। उनके सिद्धान्तों में भेद है, एक दूसरे के सुरमन है। लेखक की कनाचातुरी इसमें है कि एक ही मुलाकात में श्राप उसके चरित्रों से सदा के लिए परिचित हो जाते हैं। पालम की तस्वीर कमी आपके चित्तसे न उतरेगी। कितना सरल, प्रसन्नमुख, दयालु प्राणी, है। उसे आप अपने बगीचे में पेड़ों को सींचते हुए पायेंगे। अहिंसा का ऐसा मत कि अपने कन्धों पर बैठे हुए पक्षियों को भी नहीं उड़ासा, सँभल-सँभल कर चलता है कि कहीं उसके सिरपर बैठा हुआ कबूतर चौंक कर उड़ न जाय। टिमायनीज़ को देखिये। शंकाबाद की सजीव मूर्ति है। पर इतने घावों के होते हुए भी, वेजस्मिकता में ईसाई मच से कहीं बढ़े हुए थे। ईसाई धर्म को जो इतनी सफलता प्राक्ष धुई इसका हेतु पह विद्यासाधता श्री जिसकी एक झलक आप 'भोज' के प्रकरण में पायेंगे वास्तव में पहायोन साहित्य-संसार में एक अनू