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अहङ्कार

ज्ञान ही यथार्थ ज्ञान है। इसके सिवाय सब मिथ्या है, धोखा है। प्रेम ही से ज्ञान प्राप्त होता है। जिसका हमको ज्ञान नहीं, वह केवल कल्पना है। मिथ्या के लिए अपने जीवन-मुख में क्यों बाधा डालें?

थायस सरोष होकर उत्तर देती—

तुम जैसे मनुष्यों से भगवान बचाये, जिन्हें कोई आशा नहीं, कोई भय नहीं। मैं प्रकाश चाहती हूॅ, जिससे मेरा अन्तःकरण चमक उठे।

जीवन के रहस्य को समझने के लिए उसने दर्शन-ग्रंथों को पढ़ना शुरू किया, पर वह उसकी समझ में न आये। ज्यों-ज्यों बाल्यावस्था उससे दूर होती जाती थो, त्यों-त्यों उसकी याद उसे विकल करती थी। उसे रातों को भेष बदल कर उन सड़कों, गलियों, चौराहों पर घूमना बहुत प्रिय मालूम होता जहाँ उसका बचपन इतने दुःख से कटा था। उसे अपने माता-पिता के मरने का दुःख होता था, इस कारण और भी कि वह उन्हें प्यार न कर सकी थी।

जब किसी ईसाई पूजक से उसकी भेंट हो जाती तो उसे अपना बप्तिसमा याद आता और चित्त अशान्त हो जाता। एक रात को वह एक लम्बा लबादा ओदे, सुन्दर केशों को एक काले टोप से छिपाये, शहर के बाहर विचर रही थी कि सहसा वह एक गिरजा घर के सामने पहुॅच गई। उसे याद आया, मैंने इसे पहले भी देखा है। कुछ लोग अन्दर गा रहे थे और दीवार के दरारों से उज्वल प्रकाश-रेखायें बाहर झाँक रही थीं। इसमें कोई नवीन पात न थी क्योंकि घर लगभग २० वर्षों से ईसाई- धर्म के मार्ग में कोई विन बाधा न थी। ईसाई लोग निरापद रूप से अपने धर्मोत्सव करते थे। लेकिन इन भजनों में इतनी