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अहङ्कार

शाक्य और शुद्धाचरण के उपदेशा? कदापि नहीं। ग्रंथ के पन्नों पर अक्षरों की जगह अगणित छोटी छोटी थायसें नृत्य कर रही थीं। उनमें से एक भी मेरी उँगली से बड़ी न थी, पर उनकी छवि अपार थी और सब एक ही थायस का प्रतिविम्ब थीं। कोई तो रत्नजड़ित वस्त्र पहने अकड़ती हुई चलती थी, कोई श्वेत मेघ-समूहों के सदृश स्वच्छ आवरण धारण किये हुए थी; कोई ऐसी भी थी जिनकी नग्नता हृदय मे बासना का संचार करती थीं। सबके पीछे दो एक ही रंग-रूप की थीं। इतनी अनुरूप कि उनमें भेद करना कठिन था। दोनों हाथ मे हाथ मिलाये हुए थीं, दोनों ही हँसती थीं। पहली कहती थी—'मैं प्रेमी हूॅ।' दूसरी कहती थी—'मैं मृत्यु हूँ।

यह कह कर निसियास ने थायस को अपने करपाश में खींच लिया। थायस की आंखें झुकी हुई थीं। निसियास को यह ज्ञान न हो सका कि उनमें कितना रोष भरा हुआ है। वह इसी भाँति सूक्तियों की वर्षा करता रहा, इस बारसे बेखवर कि थायस का ध्यान ही इधर नहीं है। वह कह रहा था—जब मेरी आँखों के सामने यहाशब्द आये—'अपनी आत्मशुद्धि के मार्ग में कोई बाधा मत आने दो तो मैंने पढ़ा 'थायस के अपरस्पर्श अग्नि से दाहक और मधु से मधुर हैं!' इसी भाँति एक पण्डित दूसरे पण्डितों के विचारों को उलट पलट देता है, और यह तुम्हाराही दोष है। यह सर्वथा सत्य है कि जब तक हम वही है जो है वय तक हम दूसरों के विचारों में अपने ही विचारों की झलक देखते रहेगे।

वह अब भी इधर मुखातिब न हुई। उसकी आत्मा अभी तक हव्शी की कान के सामने झुकी हुई थी। सहसा उसे आह भरते देखकर उसने उसकी गर्दन का चुम्बन कर लिया और बोला—प्रिये, संसार मे सुख नहीं है जब तक हम संसार को