पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१२२

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करके इस पवित्र नदी में स्नान करने के लिये आती है और स्नान करते ही संपूर्ण पातक नष्ट होने पर वह शुभ्र वर्ण धारण करती जाती है। ऐसी एक दंत-कथा कही जाती है कि नर्मदा के दर्शन मात्र से ही गंगा में स्नान करने के पुण्य के समान पुण्य प्राप्त होता है। इस नदी की महिमा इतनी विस्तृत है कि इसके आस पास ३० मील की दूरी तक जहाँ जहाँ नदियाँ और कुंड हैं, उनमें प्रत्यक्ष इसी नदी का महत्व आ गया है । इस नदी का वर्णन वायु पुराण के रेवाखंड में दिया हुआ है । इस नदी को रेवा नाम से भी पुकारते हैं इसके जल का प्रवाह पथरीले प्रदेशों में से उछलता हुआ बहता है । इस कारण इसको रेवा ( रेवा अर्थात् कूदना ) नाम दिया गया है ।

इस नदी का निकास श्री शंकर महाराज के पास से हुआ है, इस कारण यह उनको प्रिय होगी और यह ठीक भी है । इसी लिये इस नदी को शांकरी भी कहते हैं । इतना ही नहीं वरन् नर्मदा जी की रेत में जितने कंकड़ पाये जाते है वे सब शंकर के बाण होते हैं। “नर्मदा के जितने कंकड़ उतने ही शंकर" इस प्रकार की एक लोक-प्रसिद्ध कहावत है । इन बाणों की आवश्यकता आज दिन भी अधिक है । इस कारण इनका मूल्य भी अधिक होता है ।

नर्मदा परम पवित्र नदी होने के कारण अहिल्याबाई ने अपना लक्ष महेश्वर की तरफ लगाया था । महेश्वर का स्थान रामायण, महाभारत तथा पौराणिक समय से प्रसिद्ध है । इस नगरी का नाम पुराणों और बौद्ध ग्रंथों में भी दृष्टिगत होता