पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१५७

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चौदहवाँ अध्याय ।

आख्यायिका अर्थात लोकमत ।

नाना प्रकार के वस्त्र आभूषणों से जैसे शरीर का श्रृंगार किया जाता है वैसे ही विवेक, विचार तथा राजनीति से अंतःकरण को भूषित करना चाहिए। शरीर चाहे जैसा सुंदर हो, सतेज और वस्त्राभूषण से सजा हो, परंतु यदि अंत:करण में चातुर्य नहीं है तो वह कदापि शोभा नहीं पा सकता। सर्वदा एक ही प्रकार का अवसर नहीं आता, और न नेम भी सहसा काम देता है। अत्यंत नेम रखनेवाले को राजनैतिक दाँव पेचों में धोखा हो जाता है। “अति सर्वत्र वर्जयेत" इस कारण विचार पूर्वक काम करना चाहिए। विवेकी पुरुष को दुराग्रह में न पड़ना चाहिए। ईश्वर सर्व कर्ता है। उसने जिसे अपना लिया है, उस पुरुष का विचार विरला ही जान सकता है। न्याय, नीति, विवेक, विचार, नाना प्रकार के प्रसंग और दूसरे का मन परखना ईश्वर की देन है। महा यत्न, सावधानी, समय आ पड़ने पर धैर्य, अद्भुत कार्य करना, ईश्वर की देन है। यश, कीर्ति, प्रताप, महिमा, असीम उत्तम गुण और अनुयमता और देव ब्राह्मण पर श्रद्धा रखना, आचार विचार से चलना, अनेकों को आश्रय देना, सदा परोपकार करना ये सब परमात्मा की देन हैं। यह लोक परलोक सम्हालना, अखंड सावधान रहना, परमात्मा का पक्ष ग्रहण करना, ब्राह्मण की