पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/१५८

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चिंता रखना, अनाथों को पालना और उत्तम गुणग्राहकता, तीक्ष्ण तर्क, विवेक, धर्मवासना आदि का होना परमात्मा की असीम कृपा बिना दुर्लभ है।

(१) “मल्हारराव की पुत्रवधू अहिल्याबाई" ने जो अपनी तारुण्यावस्था ही में विधवा हो चुकी थी इसवी सन् १७६८ से सन् १७९८ तक अर्थात २८ वर्ष पर्यंत एकछत्र राज्य किया था। बाई के न्याय करने और प्रजा को सुख देने की ऐसी विलक्षण शैली थी कि यद्यपि भील लोग न तो इनके स्वजातीय थे और न इनके संबंधी थे परंतु वे भी इनके सतगुणों का ज्ञान और पवित्र नाम का उच्चारण आज दिन भी गान रूप से करते हैं। जब से वे राज्यासन पर बैठीं तब से उन्होंने अपने अंत समय तक धर्मराज्य के समान राज्य किया था। उनके धर्म की इतनी प्रबल कीर्ति सारे भारत में फैली हुई है, कि समस्त भारतवासी और दूसरे देशवासी एक स्वर हो उनके उत्तम उत्तम गुणों का बखान कर तल्लीन होते हैं। ऐसी कोई भी दिशा नहीं है जहाँ बाई के पवित्र नाम की ध्वनि न गूँजती हो। सनातन धर्म की डगमगाती हुई दशा को अहिल्याबाई ने ही धर्म रूपी जल से सींच कर हरा भरा बनाया था। उनकी जितनी कीर्ति कही जाय थोड़ी है।

(२) अनंतफंदी और अहिल्याबाई– अनंतफंदी धोलप नाम का एक यजुर्वेदी ब्राह्मण संगमनेर में रहता था। इसके पूर्वजों का धंधा गोपालन था। परंतु अनंतफंदी गौ पालने के अतिरिक्त दुकानदारी भी करता था। और इसको लावनी बनाकर दूसरों को सुनाने और खेल-तमाशे की