पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/४३

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समाचार वह नायक सुनाने को दौड़ा चला आ रहा है । थोड़े ही समय में वह नायक इनके पास पहुँचा और चीख चीख कर रोने लगा । रोते रोते उसने पुत्रशोक का संवाद कह सुनाया। अपने एकमात्र प्राण सरीखे प्यारे पुत्र की मृत्यु का वृत्तांत सुनते ही मल्हारराव ने ज़ोर से एक आह भरी, चीख मारी और छाती पीट तुरंत मूर्च्छित होकर वे पृथ्वी पर गिर पड़े । इधर बात की बात में मल्हारराव की सेना के पैर उखड़ने लग और दुश्मनों को यह खबर लगते ही मरहठों की सेना को उन्होंने आकर दबाना चाहा । परंतु मल्हारराव के फौज़ी अफसरों ने तुरंत मल्हारराव की और खंडेराव की देह को रणक्षेत्र से अलग हटा कर सुलह का झंडा खड़ा कर दिया ।

मल्हारराव को बहुत प्रयत्न करने पर जब सुध आई तब वे अति दीन होकर पागलों की सी बातें करने लगे । शोक में व्याकुल होने में मल्हारराव के सब अंग ऐसे शिथिल हो गए, मानों एक मत्त गजराज ने बाल तरु को पृथिवी से उखाड़ अलग गिरा दिया हो । मल्हारराव का कंठ सूख गया है,मुँह से कोई शब्द नहीं निकलता. इनकी दशा बिना जल की मछली की दशा के सदृश हो गई। मल्हारराव शोक से विकल हो तन क्षीण मुख मलीन पृथ्वी पर ऐसे दिखाई देते थे मानो कमल जल से उखड़ कुम्हला गया हो । इनके होंट सूख रहें हैं, आँखें लाल लाल हो रही हैं और आँसुओं की वर्षा से छाती पर का कपड़ा भींग रहा है। जब इनकी मूर्च्छा टूटी और जब प्राण प्यारे पुत्र की सुध लाई तब आप अपने पुत्र की लाश को बार बार छाती से लगाने लगे और अपने आँसुओं से पुत्र के मुख