पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/४७

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किंतु तू भी प्राण त्याग देगी तो मुझे भी अपना प्राण तेरे पहले ही दे देना अच्छा है। बेटी! यह राज पाट, धन संपदा सब तेरी ही है । यदि तू चाहेगी तो जो कुछ मेरे जीवन के शेष दिन रह गए हैं वे भी किसी प्रकार बीत जायेंगे, मृत्यु ने मुझे अपना प्रास बना लिया है, जिस प्रकार प्रचंड आँधी चलकर पुराने से पुराने वृक्ष को जड़ से उखाड़ कर छिन्न भिन्न कर देती हैं उसी प्रकार इस मृत्यरूप प्रचंड़ आँधी ने मेरे एकमात्र जीवन के आधार प्यारे पुत्र को पछाड़ डाला है। हाँ, मेरी मथ आशाएँ नष्ट हो गई, उत्साह भंग हो गया और मान छिन गया। जिस प्रकार जड़ से वृक्ष को उखाड़ डालते हैं उसी प्रकार में भी भमहृदय हो भूमिशायी हो गया हूँ । मैं इस संसार में एक मात्र रह गया, मेरा सहायक अब इस दुनिया में कोई भी न रहा, मैं निराशा का जीवन व्यतीत कर रहा हूं, जिन्हें मेरे पश्चात् जाना चाहिए था आज वे ही मेरे पूर्व चल बसे, जिनको मैं अपनी संतान माने बैठा था आज वेही मेरे पुरखा बन गए । ऐसा कह कर बूढ़े मल्हारराव बिलख विलख कर रोने लगे । उनकी इस दीन अवस्था को देख कर सब का हृदय फटने लगा और स्वयं अहिल्याबाई का भी हृदय ऐसा भर आया कि उन्हें सती होने का अपना संकल्प त्यागना पड़ा और अंत को खंडेराव की और्ध्वदैहिक क्रिया समाप्त की गई ।

पहले कहा जा चुका है कि मल्हारराव ने घर के सब काम काज के चलाने का संपूर्ण भार अहिल्याबाई पर ही छोड दिया था । परंतु खंडेराव की मृत्यु के उपरांत राज-काज की सारी व्यवस्था देखने का भार भी अब अहिल्या