पृष्ठ:अहिल्याबाई होलकर.djvu/९४

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बुझाया, परंतु जब उन जंगली मूर्खों ने एक न सुनी तब बाई ने उन लोगों के साथ कठोर बर्ताव आरंभ कर बड़े बड़े भील दलपतियों को अपनी कोपाग्नि से भस्म कर डाला और उनके अनेक ग्राम भस्म तथा उच्छिन्न करा दिए । यहाँ तक कि भील जाति का बीज ही नष्ट हुआ चाहता है, यह जान विवश हो सब भीलों ने प्रतापशालिनी अहिल्याबाई की अधीनता सहर्ष स्वीकार करने के हेतु प्राणरक्षा की भिक्षा चाही । और जब बाई को पूर्ण रीति से यह विश्वास हो गया कि ये लोग अब मेरे ही आश्रय में रहने पर आरूढ़ हैं तब दयामयी बाई ने उन्हें आश्रय दिया और उन लोगों को पुनः प्रेमयुक्त वचन से उपदेश दे कृषि और वाणिज्य करने के निमित्त धन की सहायता पहुँचा उनको उद्यम में लगाया । इसके अतिरिक्त बाई ने प्रत्येक भील दलपति के अधीनस्थ स्थान से होकर आने जानेवाले पथिकों के धन और प्राण की रक्षा का पूरा पूरा उत्तम प्रबंध कर दिया । इस प्रकार उन जंगली मनुष्यों के रहन सहन तथा जीविका का प्रबंध करके उनकी उद्दंडता अहिल्याबाई ने एक दम मिटा दी थी ।

इस प्रकार की व्यवस्था और प्रबंध से उन लोगों को शांतिमय जीवन निर्वाह करने के उपयुक्त बना देने से बाई की कीर्ति इतनी अधिक हो गई थी कि सपूर्ण प्रजा अपनी संपत्ति और अपना जीवन बाई के निमित्त लगाने के लिये उद्यत हो गई थी । और ज्यों ज्यों बाई की उत्तम राजनीति का स्वाद प्रजा को मिलता था त्यों त्यों उनकी श्रद्धा और भक्ति बाई पर अधिक नित्य नूतन बढ़ती थी । अपनी प्रजा को अपनी सत्ता तथा प्रबंध द्वारा अपने