पृष्ठ:आँधी.djvu/८३

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व्रत भंग

तो तुम न मानोगे?

नहीं अब हम लोगों के बीच इतनी बड़ी खाई है जो कदापि नहीं पट सकती।

इतने दिनों का स्नेह ?

उँ । कुछ भी न ।। उस दिन की बात आजीवन भुलाई नहीं जा सकती नन्दन ! अब मेरे लिए तुम्रा और तुम्हारे लिए मेरा कोई अस्तिष नहीं । वह अतीत के स्मरण स्वप्न है समझे ?

यदि याय नहीं कर सकते तो दया करो मिन! हम लोग गुरु कुल में

हाँ-हा मैं जानता हूँ तुम मुझे दरिद्र युवक समझ कर मेरे ऊपर कृपा रखते थे कि तु उसम कितना तीपण अपमान था उसका मुझे अब अनुभव हुआ।

उस बम बेला में जब उषा का अरुण पालोक भागीरथी की' लहरों के साथ तरल होता रहता हम लोग कितने अनुराग से स्नान करने जाते थे। सच कहना क्या वैसी मधुरिमा हम लोगों के स्वक हृदयों म न थी।

रही होगी-पर अब उस मर्मघाती अपमान के बाद ! मैं खड़ा रह गया तुम स्वर्ण स्थल पर चढ़ कर चले गये एक बार भी नहीं पूछा। तुम कदाचित जानते होगे नदन कि कंगाल के मन म प्रलोमनों के प्रति कितना विद्वेष है ! क्योंकि वह उससे सदैव छल