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चूढ़ीवाली
 

"क्या रोज नयी चूड़ियाँ पहनाने के लिये इन्हें हुक्म मिला है?" बहूजी ने गर्व से पूछा।

सरकार ने कहा---"पहनो तो बुरा क्या है।"

"बुरा तो कुछ नहीं, चूड़ी चढ़ाते हुए कलाई दुखती होगी।" चूड़ीवाली ने सिर नीचा किये कनखियों से देखते हुए कहा। एक लहर-सी लाली आँखों की ओर से कपोलों को तर करती हुई दौड़ जाती थी। सरकार ने देखा एक लालता भरी युवती व्यंग कर रही है। हृदय में हलचल मच गयी, घबरा कर बोले---"ऐसा है तो न पहने।"

"भगवान करे रोज पहनें। चूड़ीवाली आशीर्वाद देने के गम्भीर स्वर में प्रौढ़ा के समान बोली।

"अच्छा तुम अभी जाओ।" सरकार और चूड़ीवाली दोनों की ओर देखते हुए बहूजी ने झुँझला कर कहा।

"तो क्या मैं लौट जाऊँ? आप तो कहती थीं न कि सरकार को ही पहनाओ, तो जरा उनसे पहनने के लिये कह दीजिये।"

"निकल मेरे यहाँ से।" कहते हुए बहूजी की आँखें तिलमिला उठीं। सरकार धीरे से निकल गये। अपराधी के समान सर नीचा किये चूड़ीवाली अपनी चूड़ियाँ बटोर कर उठी। हृदय की धड़कन में अपनी रहस्यपूर्ण निश्वास छोड़ती हुई चली गयी।

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